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Sumil Yadav

| Posted on | Education


फांसी की सजा सुनाने के बाद पेन की निब क्यों तोड़ दी जाती है ?


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अक्सर आपने फिल्मों में देखा होगा की जब अपराधी को फांसी की सजा सुनाई जाती है तो अक्सर जज अपने पैन कि निब तोड़ देता है यह केवल फिल्मों में नहीं होता बल्कि असल जिंदगी में भी होता है इसके पीछे का कारण यह है कि यह अपराध फिर से दोबारा ना हो और किसी को फिर से दोबारा ऐसी सजा न देनी पड़े इस आशा से जज अपने पेन की निब को तोड़ देता है। क्योंकि भारत में फांसी एक ऐसी सजा होती है सबसे बड़ी सजा है। और जब अपने पेन की निब तोड़ देता है तो इसका मतलब यह होता है कि अब जज अपना फैसला नहीं बदल सकता है।Letsdiskuss


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Marketing Manager | Posted on


फिल्मों में अक्सर देखा जाता है, जब जज किसी मुजरिम को फांसी की सजा सुनाता है तो उसके बाद वह उस निब को तोड़ देता है । ऐसा सिर्फ फिल्मों में नहीं होता बल्कि ऐसा असल ज़िंदगी में भी होता है । जब भी जज किसी मुज़रिम को फांसी की सजा सुनाता है उसके बाद वह उस पेन की निब तोड़ देता है । इसका सामान्य रीज़न यह कहा जाता है कि उस पेन से अब दोबारा कोई और फैसला नहीं हो सकता और दूसरा कि जिस सजा के लिए मुजरिम को फांसी की सजा मिल रही है ऐसा जुर्म फिर दोबारा न हो । इस आशा के साथ पेन की निब तोड़ दी जाती है, परन्तु इसके लिए यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जिस पेन ने किसी की ज़िंदगी का फैसला कर दिया जज उस पेन के जीवन को भी वहीं ख़त्म कर देता है ।


Letsdiskuss (इमेज-गूगल)


वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऐसा सिर्फ भारत में ही होता है कि फांसी की सजा के बाद पेन की निब तोड़ दी जाए क्योंकि भारत में फांसी एक ऐसी सजा होती है जो सबसे बड़ी होती है । भारत में किसी बहुत बड़े अपराध के लिए ही फांसी की सजा सुनाई जाती है, और अगर एक बार सुप्रीम कोर्ट के जज ने फांसी की सजा सुनकर पेन तोड़ दिया तो उसके बाद वो खुद भी अपना फैसला नहीं बदल सकते । पेन तोड़ने का जज का मतलब ही इस बात से होता है कि उनके द्वारा किया गया फैसला अब अटल है, उस फैसले को वो खुद भी नहीं बदल सकते इसलिए वह उस पेन को ही तोड़ देते हैं ताकि दोबारा उस अपराध की सजा के फैसले के लिए कोई गुंजाईश न रहे । इसके लिए अपराधी दोबारा कोर्ट में अर्ज़ी नहीं लगा सकते , अगर कोई मुज़रिम फिर भी अर्जी लगाना चाहता है तो वह सीधा देश के राष्ट्रपति के पास अपनी एक याचिका भेज सकता है ।


फांसी का फंदा एक विशेष जगह से ही मंगवाया जाता है,। फांसी का फंदा बिहार के बक्सर जिले के कुछ कैदियों द्वारा बनवाया जाता है, और यह मनिला रस्सी से बनता है । फांसी के वक़्त जल्लाद मुजरिम से गले में फांसी का फंदा डालकर मुजरिम के कान में कहता है कि "मुझे माफ़ कर दो, मैं हुक्म का गुलाम हूँ ,मेरा बस चलता तो मैं आपको जीवन देकर सत्य के मार्ग पर चलाता " ऐसा कह कर जल्लाद मुज़रिम के सिर पर काले रंग का कपड़ा डालकर उसके गले में फांसी का फंदा लगा देता है । इसके बाद जल्लाद अपना काम करता है , जिसके कारण मुज़रिम को फांसी लग जाती है ।



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