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पाप और पुण्य करना इंसान के अच्छे बुरे कर्मों का परिणाम है, लेकिन हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि दान देना सबसे बड़ा पुण्य है, जो कि सही भी है लेकिन मेरा यह मानना है कि मनुष्य निस्वार्थ भाव से दान दें तो वही सच्चा दान है, अगर वह अपने बाप को कम करने के लिए दान दे रहा है तो ऐसा करने से उसके पाप कम नहीं होंगें, लेकिन अगर किसी मनुष्य को अपने बुरे कर्मों का पश्चाताप हो चुका है और उसके बाद वह बुरे कर्मों का परित्याग कर अच्छे कर्म करना चाहता है तब दान देना निस्वार्थ दान कहलाएगा।
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जैसा कि आप जानते हैं कि हमारे हिंदू धर्म में दान का एक बहुत बड़ा महत्व है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि दान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि आप बिना किसी स्वार्थ के जरूरतमंदों को दान करके उनकी जरूरत पूरी करते हैं तो आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। और यदि आप अपना पाप कम करने के लिए दान करते हैं तो इसका कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए दान करना है तो निस्वार्थ दान करिए। क्योंकि दान करने से पूर्व जन्मों के कष्टों में कमी आती है। इसलिए दान हमेशा सच्ची भावना से करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको दान करने का पूरा फल मिलेगा।
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निस्वार्थ भावना से दान पुण्य करने से पाप कम हो जाते है, यदि कोई व्यक्ति आपने जीवन मे आपने पापो क़ो कम करना चाहता है तो निस्वार्थ भावना से जरूरतमंद व्यक्तियों क़ो कपड़ा, खाना दान करके आपने पापो क़ो कम कर सकते है।
इसके अलावा आपने पापो क़ो करने के लिए आप गरीबो क़ो कम्बल, चादर और उनको कुछ काम देकर पुण्य कमा सकते है, क्योंकि पैसे दान देना गलत होगा इससे अच्छा है कि गरीबो क़ो कोई काम देकर पुण्य कमा सकते है।
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