पाप और पुण्य करना इंसान के अच्छे बुरे कर्मों का परिणाम है, लेकिन हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि दान देना सबसे बड़ा पुण्य है, जो कि सही भी है लेकिन मेरा यह मानना है कि मनुष्य निस्वार्थ भाव से दान दें तो वही सच्चा दान है, अगर वह अपने बाप को कम करने के लिए दान दे रहा है तो ऐसा करने से उसके पाप कम नहीं होंगें, लेकिन अगर किसी मनुष्य को अपने बुरे कर्मों का पश्चाताप हो चुका है और उसके बाद वह बुरे कर्मों का परित्याग कर अच्छे कर्म करना चाहता है तब दान देना निस्वार्थ दान कहलाएगा।
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