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parvin singh

Army constable | Posted on | Education


मधुमक्खियों का प्रजनन एवं प्रबंधन को क्या कहते है ?


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मधुमक्खियों के प्रजनन और प्रबंधन को मधुमक्खी-पालन या एपिकल्चर के नाम से जाना जाता है। यह मधुमक्खियों की कॉलोनी का हम मानवों द्वारा किया जाने वाला एक सघन रख-रखाव ही है। यह आज एक अच्छे मुनाफ़े का व्यवसाय बन चुका है। फूलों के पराग से बने शहद और के अलावा मधुमक्खियों के हड्डे, प्रोपोलिस, पराग, रॉयल-जेली व डंक-विष भी व्यवसायिक महत्व के होते हैं।

मधुमक्खी परिवार में एक रानी-मधुमक्खी, हजारों श्रमिक-मधुमक्खियां और सौ-दो सौ नर प्रजाति की मधुमक्खियां होती हैं। इसमें सिर्फ़ रानी ही अंडे देती है। जो एक पूरी तरह से परिपक्व मादा-मधुमक्खी होती है। बाकी श्रमिक-मधुमक्खियां, जो अपरिपक्व मादा-मधुमक्खियां ही होती हैं, अंडों की देखरेख और फूलों से पराग चुनने का काम करती हैं। नर-मधुमक्खी का काम केवल रानी-मधुमक्खी से प्रजनन का रहता है। और जिसके तुरंत बाद नर-मधुमक्खी की मौत भी हो जाती है।

भारत में मधुमक्खियों की मुख्यतः चार प्रजातियां पाई जाती हैं। छोटी मधुमक्खी या एप्स फ्लोरिया, भैरों या पहाड़ी मधुमक्खी जिसे वैज्ञानिक भाषा में एपिस डोरसाटा भी कहते हैं, देशी मधुमक्खी यानी एपिस सिराना इंडिया और यूरोपियन या इटैलियन मधुमक्खी अर्थात् एपिस मेलिफेरा। इनमें देशी और इटैलियन मधुमक्खियों को लकड़ी के बक्सों में आसानी से पाला जा सकता है। देशी मधुमक्खी से प्रति-परिवार पांच से दस किलो जबकि इटैलियन नस्ल की मधुमक्खियों के एक परिवार से एक बार में पचास किलो तक शहद लिया जा सकता है।

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मधुमक्खी-पालन के लिये शुरुआत में अच्छा पूंजी-निवेश करना पड़ता है पर आगे चलकर उसका कई गुना रिटर्न भी मिलता है। और इस व्यवसाय को सरकार की ओर से भी विशेष मदद व प्रोत्साहन हासिल है। मधुमक्खी-पालन के लिये आपको मौन-पेटिका, शहद निष्कासन यंत्र, छीलने की छुरी, छत्ताधार, रानी रोक पट, नकाब, स्टैंड, रानी कोष्ठ-रक्षण यंत्र, भोजन-पात्र, दस्ताने, धुआं करने का यंत्र, ब्रश, खुरपी आदि की व्यवस्था करनी होती है।

मधुमक्खी पालन यानी मधुमक्खियों के प्रजनन और प्रबंधन से संबंधित कामों का उद्देश्य मुख्य रूप से शहद और मोम का उत्पादन करके आर्थिक लाभ कमाना ही है। बक्सों में मौज़ूद मधुमक्खियों के छत्तों का तीन चौथाई से अधिक प्रकोष्ठ जब मोमी टोपी से ढक जाता है तभी शहद निकालने का काम करना चाहिये। क्योंकि तब शहद परिपक्व होता है। जिसमें पानी की मात्रा ज्यादा नहीं होती। साथ ही शहद निकालने की प्रक्रिया शाम को करनी चाहिये। अन्यथा मधुमक्खियां इसमें बाधक बन सकती हैं।

शहद से भरे छत्तों के बक्सों को किसी बड़ी मच्छरदानी के अंदर रखकर मधु निष्कासन का काम करना चाहिये। फिर छीलन चाकू को गर्म पानी से गर्म करके उससे मोम की टोपियां हटा देनी होती है। इसके बाद छत्तों को शहद निकालने की मशीन में रखकर और छत्तों को उलट-पुलटकर दोनों ओर से शहद निकाला जाता है। इस अशुद्ध शहद को किसी टंकी में दो दिन तक पड़ा रहने देते हैं। इससे मैल पेंदी में बैठ जाती है और मोम वगैरह शहद की ऊपरी सतह पर तैरने लगते हैं। अब किसी साफ कपड़े से छानकर शहद को बोतलों या डिब्बों में भरकर रख सकते हैं।

शहद की कीमत बाजार में तीन से सात सौ रूपये प्रति लीटर है। इसीलिये मधुमक्खियों का प्रजनन और प्रबंधन यानी एपिकल्चर एक अच्छा मुनाफ़ा देने वाला व्यवसाय बन चुका है।


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मधुमक्खियों के प्रजनन एवं प्रबंधन को एपीकल्चर के नाम से जाना जाता है। यह वह एपीकल्चर है जो आज मानव के हर क्षेत्र व्यवसाय और औषधि रूप में अत्यधिक महत्व एवं आवश्यक रूप से निपुण है। और इस व्यवसाय को करने क़ी लिए शुरुआत में अच्छा पूंजी-निवेश करना पड़ता है पर आगे चलकर उसका कई गुना एक अच्छे मुनाफे के रूप में प्राप्त होता है। मधुमक्खी के प्रजनन एवं प्रबंधन से ही हमे शहद की प्राप्ति हो पाती है जो आज बाजारों में इसे600 से ₹700 प्रति किलो बेचा जा रहा है.।Letsdiskuss


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