भारत, एक विशाल और विविधतापूर्ण राष्ट्र, अपने भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण दक्षिण एशिया में एक केंद्रीय स्थान रखता है। इसके पड़ोसी देशों—पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार—के साथ भारत के संबंध समय-समय पर उतार-चढ़ाव का शिकार रहे हैं। हाल के वर्षों में यह धारणा प्रबल हुई है कि भारत के पड़ोसी देश उससे दूरी बनाते जा रहे हैं। इस लेख में हम इस प्रश्न का विस्तृत विश्लेषण करेंगे कि आखिर भारत से उसके पड़ोसी बारी-बारी क्यों दूर हो रहे हैं, और इसके पीछे के कारणों—राजनीतिक, आर्थिक, भू-रणनीतिक और सांस्कृतिक—पर गहराई से विचार करेंगे।

ऐतिहासिक और भौगोलिक संदर्भ
भारत का दक्षिण एशिया में एक प्रभुत्वशाली स्थान है, जो इसके आकार, जनसंख्या और आर्थिक शक्ति के कारण स्वाभाविक है। हालांकि, यह प्रभुत्व कई पड़ोसी देशों में असुरक्षा की भावना को जन्म देता है। भारत के पड़ोसियों को लगता है कि भारत की नीतियां और महत्वाकांक्षाएं उनके हितों को प्रभावित कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, भारत और उसके पड़ोसियों के बीच औपनिवेशिक इतिहास, सीमा विवाद और सांस्कृतिक अंतर भी तनाव का कारण बनते हैं।
प्रमुख कारण
1. चीन का बढ़ता प्रभाव
पिछले कुछ दशकों में, चीन ने दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत, चीन ने श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह और मालदीव में बुनियादी ढांचा परियोजनाएं चीन के प्रभाव को दर्शाती हैं। ये देश आर्थिक सहायता के लिए भारत की बजाय चीन की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि चीन की शर्तें अक्सर कम कठिन होती हैं। भारत, जो अपनी "नेबरहुड फर्स्ट" नीति के तहत पड़ोसियों के साथ संबंध मजबूत करना चाहता है, को चीन की इस रणनीति से कड़ी चुनौती मिल रही है।
2. सीमा विवाद और क्षेत्रीय तनाव
भारत के कई पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद हैं, जो आपसी विश्वास को कमजोर करते हैं। उदाहरण के लिए:
- पाकिस्तान: कश्मीर मुद्दा और नियंत्रण रेखा पर तनाव भारत-पाक संबंधों को हमेशा तनावग्रस्त रखता है।
- चीन: लद्दाख में गलवान घाटी की घटना (2020) और अरुणाचल प्रदेश में सीमा पर तनाव ने भारत-चीन संबंधों को प्रभावित किया है।
- नेपाल: कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा क्षेत्रों पर विवाद ने हाल के वर्षों में भारत-नेपाल संबंधों में खटास पैदा की है। नेपाल द्वारा 2020 में नया नक्शा जारी करना इसका उदाहरण है। ये विवाद पड़ोसी देशों को भारत से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि वे अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को लेकर संवेदनशील हैं।
3. आर्थिक असंतुलन और निर्भरता
भारत की अर्थव्यवस्था दक्षिण एशिया में सबसे बड़ी है, लेकिन यह अपने पड़ोसियों के साथ व्यापार और निवेश में असंतुलन पैदा करती है। कई पड़ोसी देशों को लगता है कि भारत के साथ व्यापार उनके लिए घाटे का सौदा है। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश और भारत के बीच व्यापार में भारत का निर्यात बांग्लादेश की तुलना में कहीं अधिक है। इसके अलावा, भारत की कुछ नीतियां, जैसे गैर-टैरिफ बाधाएं और निर्यात प्रतिबंध, पड़ोसी देशों को नाराज करती हैं।
4. आंतरिक राजनीति और भारत विरोधी भावनाएं
कई पड़ोसी देशों में भारत विरोधी भावनाएं आंतरिक राजनीति का हिस्सा बन चुकी हैं। स्थानीय नेता और राजनीतिक दल भारत के खिलाफ बयानबाजी करके अपनी जनता के बीच लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए:
- मालदीव: हाल के वर्षों में मालदीव में "इंडिया आउट" अभियान ने भारत के प्रभाव को कम करने की मांग की है।
- नेपाल: नेपाल की कुछ राजनीतिक पार्टियां भारत को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाला मानती हैं। यह भावना भारत की छवि को नुकसान पहुंचाती है और पड़ोसी देशों को भारत से दूरी बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
5. भारत की विदेश नीति में कमियां
भारत की "नेबरहुड फर्स्ट" नीति का उद्देश्य पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना है, लेकिन कई बार इस नीति का कार्यान्वयन प्रभावी नहीं रहा है। भारत को क्षेत्रीय सहयोग संगठनों जैसे सार्क (SAARC) को और मजबूत करने की आवश्यकता है, लेकिन भारत-पाक तनाव के कारण सार्क प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा, भारत की कुछ नीतियां पड़ोसी देशों को अनदेखा करने वाली प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए, भूटान जैसे छोटे देशों को लगता है कि भारत उनकी संप्रभुता का सम्मान करने में कमी करता है।
6. सांस्कृतिक और सामाजिक कारक
भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता उसके पड़ोसियों के साथ संबंधों को प्रभावित करती है। कुछ पड़ोसी देशों में भारत की सॉफ्ट पावर (जैसे बॉलीवुड और योग) का प्रभाव है, लेकिन यह हमेशा सकारात्मक नहीं होता। उदाहरण के लिए, श्रीलंका और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों (तमिल और हिंदू) के साथ भारत के कथित संबंधों को लेकर संदेह पैदा होता है।
भारत के लिए रास्ता आगे
पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए भारत को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- आर्थिक सहयोग बढ़ाना: भारत को अपने पड़ोसियों के साथ व्यापार और निवेश को और अधिक संतुलित करना चाहिए। क्षेत्रीय व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
- विवादों का शांतिपूर्ण समाधान: सीमा विवादों को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है। भारत को अपने पड़ोसियों के साथ विश्वास बहाली के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
- चीन के प्रभाव का मुकाबला: भारत को अपनी आर्थिक और कूटनीतिक क्षमताओं का उपयोग करके पड़ोसी देशों को आकर्षित करना चाहिए। इसके लिए भारत को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और विकास सहायता में निवेश बढ़ाना होगा।
- क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा: सार्क जैसे संगठनों को पुनर्जनन करने और बिम्सटेक जैसे अन्य क्षेत्रीय मंचों को मजबूत करने से भारत अपने पड़ोसियों के साथ सहयोग बढ़ा सकता है।
- सॉफ्ट पावर का उपयोग: भारत को अपनी सांस्कृतिक और शैक्षिक पहल (जैसे छात्रवृत्ति और सांस्कृतिक आदान-प्रदान) के माध्यम से पड़ोसी देशों में अपनी छवि को बेहतर करना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत और उसके पड़ोसियों के बीच दूरी के कई कारण हैं, जिनमें भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्धा, ऐतिहासिक विवाद, आर्थिक असंतुलन और आंतरिक राजनीति शामिल हैं। हालांकि, यह दूरी अपरिवर्तनीय नहीं है। भारत के पास अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की क्षमता और संसाधन हैं। कूटनीति, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से भारत न केवल अपने पड़ोसियों के साथ विश्वास बहाल कर सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया में एक शांतिपूर्ण और समृद्ध क्षेत्र की स्थापना भी कर सकता है।