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आंवला नवमी क्यों मानते है, और किस देवता के आंसुओं से बना है आंवला ?


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आंवला नवमी हर साल दिवाली के बाद मनाई जाती है | यह दिवाली के नौवें दिन कार्तिक की शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है | इस दिन महिलाएं आवलें के पेड़ के नीचे बैठ कर आवलें के पेड़ की पूजा करती हैं | महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए यह पूजा करती हैं और भोजन करती हैं | हिन्दू धर्म में सभी त्यौहारों में एक यह भी त्यौहार है जो बहुत ही महत्वपूर्ण होता है | आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है |

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आंवला नवमी का महत्व :-
आंवला नवमी का कोई व्रत नहीं होता, परन्तु जब तक आंवले के पेड़ की पूजा न हो तब तक खाना नहीं खाया जाता | आंवला की पूजा करना भोग लगाना और बाद आवलें के पेड़ के नीचे ही भोजन करना | जिनकी संतान नहीं होती वो इस पूजा को संतान प्राप्ति की भावना से करते हैं | जिनकी संतान होती है वह उनकी लंबी उम्र के लिए इनकी पूजा करते हैं | अगर किसी के शरीर में कोई रोग हो जाता है, तो भी आवलें के पेड़ की पूजा और उसके नीचे बैठकर भोजन करने से रोग से मुक्ति मिलती है |

आंवला विज्ञान के महत्व से भी बहुत ही फायदेमंद है | यह एक अमृत फल है, रोज एक फल का सेवन करना आपको स्वस्थ रखता है | आमला बालों के लिए भी बहुत अच्छा होता है |


आंवला फल की उत्पत्ति :-
आंवला फल की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के आंसू से हुई | जब पृथ्वी जलमग्न हो गई तो पृथ्वी में मानव जीवन को समंभव बनाने के लिए ब्रह्मा जी ने निराकार परब्रह्म की स्तुति की और उनकी कठिन तपस्या के बाद भी जब परब्रह्म ने उन्हें दर्शन नहीं दिए तो, उनको बहुत दुःख हुआ और उनके आँखों से आंसू बहने लगे | उनके गिरे आंसुओ से आंवले के फल वाले पेड़ की उत्पत्ति हुई |


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