1. कुल सरकारी ऋण (Central Government Total Debt)
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31 मार्च 2025 तक, केंद्र सरकार का कुल ऋण लगभग ₹181.74 लाख करोड़ (₹181.7 ट्रिलियन) था। इसमें आंतरिक और बाहरी ऋण शामिल हैं
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भारत की जनसंख्या लगभग 14 करोड़ (1.4 अरब) है।
2. प्रति नागरिक ऋण (Per Capita Public Debt)
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गणना: ₹181.7 ट्रिलियन ÷ 1.4 अरब = ₹129,785 (लगभग ₹1.3 लाख प्रति व्यक्ति)।
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यह केवल केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए ऋण को दर्शाता है।
3. ऋण‑GDP अनुपात (Debt‑to‑GDP Ratio)
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IMF के अनुसार भारत का सकल सरकारी ऋण (Debt-to-GDP ratio) लगभग 83% है
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Trading Economics के अनुसार, वर्ष 2025 के अंत तक यह अनुपात 81% तक रहने की उम्मीद है

विषय का महत्व क्यों बढ़ा?
सार्वजनिक ऋण और प्रति व्यक्ति क़रज़ की समझ को निम्न बिंदुओं से देखा जा सकता है:
1. आर्थिक स्थिरता
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उच्च सरकारी ऋण का मतलब होता है अधिक ब्याज भुगतान, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर खर्च सीमित हो सकता है।
2. वित्तीय बोझ
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₹1.3 लाख की राशि से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक नागरिक का भविष्य की आय पर भी क़रज़ का बोझ पड़ेगा।
3. नीति निर्माण और पारदर्शिता
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भविष्य की आर्थिक पारदर्शिता के लिए ऋण के परिमाण और उपयोग को जनता को स्पष्ट रूप से बताना आवश्यक है।
प्रधान चिंताएँ और भविष्य की राह
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ऋण की वृद्धि दर
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अगर GDP वृद्धि ऋण की वृद्धि से धीमी रहे तो ऋण दर और अधिक बढ़ सकती है।
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डिफ़ॉल्ट जोखिम
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उच्च ऋण दर चीन और जापान जैसे देशों से तुलना में बड़ी जोखिम पैदा कर सकती है।
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निवेश और नवाचार
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सीमित संसाधनों का निवेश बुनियादी ढांचा, शिक्षा और स्वास्थ्य में हो, इसलिए ऋण का उपयोग सही क्षेत्रों में होना चाहिए।
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नीति की रणनीति
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2030 तक ऋण‑GDP अनुपात को 50% ± 1% तक लाना सरकार का लक्ष्य है
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