हमारे शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि इसमें गणना का रहस्य जुड़ा है। और अगर अष्टमी, दशमी द्वादशी, और चतुर्थी, को गर्भधान होता है तो पुत्र की प्राप्ति होती है। और इसके साथ यह भी कहा जाता है कि अगर नारियल के बीज को गाय के दूध के साथ गर्भधारण करने के पहले निकल ले इससे भी पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। और इस नारियल के बीज को दूसरे एवं तीसरे महीने में भी पीने से भी यही कामना के साथ ही पुत्र की प्राप्ति होती है.।
किस कारण से हर पति पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं होती है
एक पति-पत्नी के वैवाहिक बंधन में बंधने का एक प्रमुख कारण संतान अर्थात् पुत्ररत्न की प्राप्ति रहा है। पर यह सदैव नहीं हो पाता। आंकड़ों के मुताबिक भारत में दस से पंद्रह फ़ीसदी दंपत्ति निःसंतान हैं। अर्थात् प्रत्येक छः में से एक पति-पत्नी के जोड़े को पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हो पाती। सवाल है कि ऐसा क्यूं है! वे कौन सी असामान्यतायें हैं, जिनके चलते कोई व्यक्ति निःसंतान रह जाता है।

आंकड़े बताते हैं कि निःसंतानता के अधिकांश मामले स्त्रियों से संबंधित होते हैं--फिर भी तीस से चालीस फ़ीसदी केसेज़ पुरुषों से जुड़े होते हैं।
महिलाओं में 'फेलोपियन-ट्यूब' का न खुलना अथवा इस मार्ग में कोई अवरोध आ जाना, या फिर अंडाणुओं की संख्या और गुणवत्ता इस बात के प्रमुख कारक होते हैं कि उसके मां बनने की कितनी संभावना है। इसी तरह पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या और उनकी गुणवत्ता, शुक्राणुओं की गतिशीलता आदि कारक उसकी संतानोत्पत्ति की क्षमता को निर्धारित करते हैं।
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निःसंतानता के लिये तमाम पारंपरिक से लेकर आधुनिक इलाज़ और उपाय मौज़ूद रहे हैं। आधुनिक इलाज़ों में आईवीएफ यानी 'इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन' सबसे प्रभावी माना जाता है। इसे 'टेस्ट ट्यूब बेबी' तकनीक भी कहते हैं। जिसमें पुरुषों के शुक्राणु और महिलाओं के अंडाणुओं को लेकर, उन्हें शरीर से बाहर प्रयोगशाला में ही निषेचित कराया जाता है। निःसंतान दंपतियों के लिये यह आधुनिक विधि सबसे कारगर भी है, और सुरक्षित भी।
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कुछ समय पूर्व के एक अनुमान के मुताबिक अब तक पूरी दुनिया में अस्सी लाख से भी अधिक बच्चों का जन्म आईवीएफ यानी 'टेस्ट ट्यूब बेबी' तकनीक की सहायता से हो चुका है। इसमें क्रांतिकारी आविष्कार हुआ है 'ब्लास्टोसिस्ट कल्चर' के रूप में। जिसमें भ्रूण को पांच-छ: दिनों तक 'लैब' में विकसित करने के बाद उसे गर्भाशय में ट्रांसफ़र कर दिया जाता है। ज़ाहिर है इस प्रक्रिया में भ्रूण कहीं अधिक बेहतर स्थिति में रहता है।

हालांकि निःसंतानता से निज़ात पाने को यह 'टेस्ट ट्यूब बेबी' तकनीक कोई एकमात्र उपाय नहीं है, और न ही हमेशा उपयुक्त भी। क्योंकि इसमें कई बातें हो सकती हैं, जिन पर उनके स्तर से ही ध्यान देना उचित रहता है। जैसे महिलाओं के लिये उनके अंडाणुओं की गुणवत्ता के अलावा फेलोपियन ट्यूब की स्थिति इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, वैसे ही पुरुष के लिये उसके शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता के अलावा प्रजनन मार्ग का खुला होना भी उसकी संतानोत्पत्ति क्षमता को सुनिश्चित करता है।
इन सभी समस्याओं के लिये तरह-तरह के इलाज़ और उपाय मौज़ूद हैं। यह कभी-कभी हमारी जीवन-शैली पर भी निर्भर करता है। जिनके बारे में किसी योग्य डॉक्टर से मिलकर आसानी से समझा जा सकता है।
एक शादीशुदा जोड़े को पुत्र रत्न की प्राप्ति कैसे होगी! इसके बारे में अनेक प्रकार के उपाय बताए गए हैं, क्योंकि एक पति पत्नी के लिए पुत्र की प्राप्ति उनके जीवन में अधिक महत्व रखती है!हमारे पूर्वजों के अनुसार बताया जाता है कि पुत्र पिता के कर्म से प्राप्त होता है! और हमारे वैदिक शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि अगर कोई स्त्री अष्टमी, दशमी द्वादशी, और चतुर्थी, को गर्भधान होता है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।
हमारे वैज्ञानिकों का मानना है कि अष्टमी, दसमी, एकादशी, द्वादशी, के दिन अगर गर्भ धारण किया जाए तो इससे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। ऐसे कौन से माता-पिता नहीं चाहते हैं कि उन्हें एक पुत्र अवश्य प्राप्त हो, लेकिन कुछ लोगों को संतान की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए संतान की प्राप्ति के लिए हमारे वैज्ञानिकों ने कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त करवाएं हैं। जिन व्यक्तियों को संतान की प्राप्ति नहीं होती है उनके लिए हमारे वैज्ञानिक ने एक नए तरीके से संतान को प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने एक टेस्ट ट्यूब बेबी का निर्माण किया। टेस्ट ट्यूब का इस्तेमाल इस तरीके से किया जाता है जिससे किसी भी पुरुष का शुक्राणु को लेकर शुक्राणु को मादा के अंडाणु में प्रवेश कराया जाता है। जिससे उसे संतान की प्राप्ति हो जाती है।