अमेठी में राहुल गांधी की हार के पीछे सबसे बड़ा कारण कांग्रेस का लचर संगठन था. कांग्रेस ने इलाके में कांग्रेस की कमान जनाधार विहीन नेताओं के हाथ में दे रखी है जिनका एकमात्र गुण चापलूसी है. चाटूकार नेताओं ने सबसे ज्यादा इस इलाके में कांग्रेस की बैंड बजाई और राहुल गांधी भी इन्हीं लोगों पर आंखें मूंदकर भरोसा करते रहें.
ऐसा बिल्कुल नहीं था कि राहुल गांधी ने बतौर सांसद इस इलाके में काम नहीं किया था लेकिन उसका जरा भी प्रचार उनके कार्यकर्ताओं ने नहीं किया था. वहीं इसके उलट इस क्षेत्र में भाजपा ने संगठन विस्तार पर खूब ध्यान दिया. आरएसएस ने भी यहां पर जमकर मेहनत की. विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, साधु संतों की टोली सबने गांव गांव जाकर पिछले 10 सालों से अमेठी में काम किया.
शिव चर्चा, अखंड हरिकीर्तन जैसे कार्यक्रमों से लोगों को विशेष तौर पर महिलाओं को जोड़ कर उन्हें धर्म का चश्मा पहनाया गया जबकि राहुल गांधी ने बड़े पैमाने पर इस इलाके की महिलाओं के लिए स्वयंसेवी सहायता समूहों का निमार्ण कराया था जिससे कई परिवारों की जिंदगी बदल गई लेकिन धर्म के चश्मे ने राहुल के सब किराये कराए पर पानी फेर दिया. वहीं स्मृति ईरानी की सक्रियता भी क्षेत्र में राहुल गांधी से ज्यादा दिखी. मीडिया ने भी स्मृति के अमेठी दौरों को खूब फोकस किया.
इसके अलावा जो बसपा, सपा राहुल गांधी को अमेठी में समर्थन देने की घोषणा कर चुकी थी, अंत समय में उनके कार्यकर्ता राहुल गांधी को हराने के लिए काम करने लगे क्योंकि उन्हें समझाया जा चुका था कि अगर राहुल जीतें तो मायावती का प्रधानमंत्री बनने का सपना चूर हो जाएगा. राहुल को एमपी बनने से रोक दिया जाए तो वो पीएम भी नहीं बन पाएंगे.