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ईश्वर न्यायशील है ।
जो आत्मा जैसा कर्म करेगी वैसा ही फल भोगेगी । परमात्मा की ऐसी व्यवस्था होने से वह न्यायशील है ।
प्रार्थना की उपयोगिता ।
इसको मैं महाभारत के एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ । मनुष्य जाति का प्रतिनिधित्व करने वाला वीर अर्जुन जब मन की चंचलता से परेशान हो जाता है तो कहता है कि हे कृष्ण इस चंचल मन को वश में करना हवा और तूफान को वश में करने से भी दुष्कर कार्य है । तब योगीराज श्रीकृष्ण ने जो उत्तर दिया था उसमें इस प्रश्न का भी उत्तर शामिल है ।
हे कुन्ती पुत्र तू योग कर । अगर तू योग करने में असमर्थ है तो सारे कर्मों को मेरे ऊपर छोड़ दे ।
इसका अर्थ ।
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