चुनाव के इस मौसम ने जहां अपना आधा सफ़र तय कर लिया है वहीं चार बेहद निर्णायक चरणों के मद्देनजर नए चेहरों का हर दिन किसी न किसी पार्टी में शामिल होना और फ़िर कुछ दिनों बाद उसी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची में शामिल रहना, एक आम बात होती जा रही है। किंतु यह प्रश्न करना और इस ओर ध्यान देना आवश्यक है ।
यदि आप इस पर मंथन करें तो यही पाएंगे कि ऐसे अधिकतरउम्मीदवारों ने समाज के हित में कोई ख़ास काम नहीं किया, अपितु एक पार्टी विशेष की विचारधारा से अपनी सहमति दर्शायी, उसे अपना समर्थन ज़ाहिर किया।
पार्टी विशेष के नज़रिए से देखा जाए तो उन्हें उस कलाकार में अपना एकप्रतिनिधि, और उसके चाहने वालेसमर्थकों में एक - एक वोटदिखता है।
पर यह चलन किसी भी तरह से तार्किक नहीं है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अमूमन एक सिनेमा जगत की हस्ति जनप्रतिनिधि के किरदार में असफल हीसाबित हुई है किन्तु यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है,चलतीही जा रही है।