तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में कहा गया है जीवो की 84 लाख योनिया होती है अब यह बात समझ से बाहर है कि तुलसीदास जी को सपना आया था. जीवो की 84 लाख योनियों होती हैं या तुलसीदास ने भी उसी बात का सहारा लिया जो वेदों पुराणों में बताई जाती हैं कि मनुष्य शरीर बहुत ही कठिनाइयों से प्राप्त होता है अगर कोई बुरा कर्म करता है तो उसको 84 लाख जीवो की योनियों भुगतनी पड़ती है तब जाकर कहीं वह मनुष्य का शरीर पाता है. तुलसीदास जी ने 84 लाख जीवो के योनि वाली बात अपने राम चरित्र मानस के बालकांड में लिखा है पहले जानते हैं तुलसीदास ने इस 84 लाख प्रकार के जीवो की बात को किस प्रकार अपने राम चरित्र मानस में दर्शाया है....
"आकर चारि लाख चौरासी | जाति जीव जल थल नभ बासी|
सीय राममय सब जग जानी |करिउ प्रनाम जोरि जुग पानी"
अर्थ:जीव चार प्रकार के हैं उनकी 84 लाख योनियों है तथा वह पृथ्वी,जल ओर आकाश में रहते हैं इन सब से भरे हुए इस सारे जगत को सीतारीम मय जानकर दोनों हाथ जोड़कर मौं प्रणाम करता हूं.
देखा जाए तो अगर तुलसीदास ने यह बात लिखी है कि जीवो की 84 लाख योनिया होती है तो यह बिल्कुल भी गलत नहीं है क्योंकि तुलसीदास ने भी वेदों और धार्मिक ग्रंथों के आधार पर ही लिखा है 84 लाख योनिया हैं. यानी कि यह बात तुलसीदास की खुद की बनाई हुई बात नहीं है.
धार्मिक पुस्तकों द्वारा हर किसी के दिमाग में यह बात बिठा दी गई है कि बुरे कर्म करोगे तो 84 लाख योनियों भुगतनी पड़ेगी मगर क्या वाकई पूरे संसार में 84 लाख प्रकार के जीव हैं.इस बात को ना साइंस बता सकता है ना ही कोई विद्वान ,ना ही तुलसीदास..यह सब कहने की बातें हैं इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है. लोगों को डराने के लिए ताकि वह अपने मनुष्य रूपी शरीर में बुरे कर्म ना करें इस वजह से धार्मिक पुस्तकों में यह कहा जाता है अगर बुरे कर्म करोगे तो 84 लाख योनिया भुगतनी पड़ेंगी. वही बात तुलसीदास ने भी कही है. यानी कि तुलसीदास जी ने कोई नई बात नहीं की है. जो वो सनातन धर्म में सुनते आ रहे थे उन्होंने भी उसी बात का जिक्र किया है.