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क्या आप अपनी ज़िंदगी को 4 पंक्तियों में...

| Updated on June 27, 2023 | others

क्या आप अपनी ज़िंदगी को 4 पंक्तियों में समेट सकते हैं ?

13 Answers
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@rameshkumar7346 | Posted on October 5, 2018

ज़िंदगी को 4 पंक्ति में समेटना थोड़ा मुश्किल है | क्योकि ज़िंदगी में हर कोई इंसान 4 पल सूकून के हमेशा ढूढ़ता रहता है | जब उसको सूकून ही नहीं मिलता तो ज़िंदगी कैसे सिमट सकती है | फिर भी एक छोटी सी कोशिश है, कि शायद ज़िंदगी के कुछ पहलु समेट सकूं |

कुछ पहलु ज़िंदगी के :-

" जो ग़म दे वो ज़िंदगी
जो ग़म हर दम दे वो ज़िंदगी
जो सिर्फ तकलीफ भरा सफ़र ही न दे
जो साहिल भी दर्द सेभरा दे वो ज़िंदगी...."

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M

@meetaliasiwal7437 | Posted on October 5, 2018

ज़िन्दगी का फलसफा भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं |
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M

@madansingh6409 | Posted on October 5, 2018

चार पंक्तियों में अगर मै अपनी ज़िन्दगी व्यक्त करूँ तो वह पंक्तिया यह होंगी :-


"ऐ ज़िन्दगी तेरे लिबास तले मेरी रूह सिमट रही है
तेरी सर्द परत मुझे कचोट रही है
फिर भी तुझे ओढ़ने से रोकू कैसे खुदको
तुझसे ही मेरी साँसे चल रही है |"

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G

Guest

@guest6271 | Posted on October 5, 2018

हा बिल्कुल कर सकते है :

जन्म हुआ तो मॉ के बाहों में मिली ज़िन्दगी

पैर चले तो पाठशाला थी ज़िन्दागी

कद बड़ा तो मेरी साथी थी मेरी ज़िन्दगी

फिर क्या ज़िम्मेदारी में ही निकली मेरी ज़िन्दगी ।


लेकिन ज़िन्दगी को हमेशा खुशी से जीना चाइये ये सिर्फ 4 पल की होती है इसलिए हमेशा उत्साहित रhi

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N

@nishkarshsiddharth8215 | Posted on October 5, 2018

जन्म हुआ तब माँ की भाहे थी ज़िन्दगी

चलना सिखा तब पाठशाला बनी ज़िन्दगी

बड़ा जब कद मेरा तब बनी मेरी साथी मेरी जिन्दगी

और जब दुनिया तकलीफ में भी सलाम करे हौसलो को आपके उसे कहते है ज़िन्दगी ।


अगर आपको मेरा उत्तर पसंद आया हो तो कृपया कर ऐसे ही हौसलो वाले पोस्ट पढ़िये मेरे ब्लॉग पर लिंक आपको मिल जाएगी नीचे

http://zindagimeriteacher.blogspot.com/2018/09/zindagi-meri-teacher-soch-aur-dar.html?m=1

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@brijagupta1284 | Posted on October 6, 2018

ज़िन्दगी का सफर
है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं
कोई जाना नहीं |


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M

@medhasinghkapoor4841 | Posted on October 6, 2018

ऐ ज़िन्दगी गले लगा ले

हमने भी तेरे हर एक ग़म को

गले से लगाया है

है न !

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R

Ram kumar

@ramkumar1591 | Posted on October 6, 2018

वो चार कदम हम चल न सके

वो जो चल न सके तो बैठ गए

फिर बैठे बैठे जो नींद लगी

हम नींदो में ज़िन्दगी भूल गए |

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K

@kanchansharma3716 | Posted on November 8, 2018

हर कदम पर जो इम्तेहान ले वो ज़िंदगी,

हर वक़्त जो नया ग़म दे वो ज़िंदगी,

न दे जो सिर्फ जीने की उमीदें

जो मरने के लिए थोड़ी सी ज़मीन भी दे वो ज़िंदगी.............

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P

@poojamishra3572 | Posted on December 11, 2018

ज़िंदगी पढ़ रही हूँ, अलग अलग तरीको से

कभी खूब सुर्खिया बटोर लेती हूँ,,

कभी गिर पड़ती हूँ धम्म से,

मै ज़िंदगी हूँ गिरती हूँ , टूटती हूँ ,संभल जाती हूँ

जैसे तैसे समझो कट हीजाती हूँ |

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@rahulaobaraॉya6964 | Posted on December 13, 2018

हर कदम पर इम्तेहान लेती है ये ज़िंदगी,

कुछ न कहो फिर भी क्यों सहती है ये ज़िंदगी,

वक़्त बेवक्त एक आहट महसूस करता है ये दिल,

न जाने किस हद तक बदलेगी ये ज़िंदगी

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S

@satindrachauhan2730 | Posted on December 26, 2018

ज़िंदगी के इम्तेहान को कोई समझ नहीं सका

वक़्त का तूफ़ान कभी थम नहीं सका

जब भी सोचा ज़िंदगी जिएंगे अब खुल के

तभी न जाने क्यों ज़िंदगी को ये सहन न हो सका........

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@krishnapatel8792 | Posted on June 27, 2023

जिंदगी को चार पंक्ति में समेटना थोड़ी मुश्किल है क्योंकि जिंदगी में इतने उतार और चढ़ाव आते हैं कि कुछ समझ में नहीं आता है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए कभी जिंदगी में खुशी आती है तो कभी जिंदगी में गम आता है इस प्रकार जिंदगी में गम और खुशी का दौरा लगा रहता है लेकिन फिर भी मैं कोशिश करूंगी कि किन्हीं चार पंक्तियों में जिंदगी को कैसे समेटा जा सकता है।

कुछ इस तरह जिंदगी को 4 पंक्तियों में समेट सकते हैं जैसे कि हम आपको नीचे बताने जा रहे हैं :-

सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य एक ही होगा।

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