बॉलीवुड में इन दिनों मानों बायोपिक फिल्मों का चलन हैं | मिल्खा सिंह के जीवन पर आधारित फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ के बाद अब तक हमने कई सारी बायोपिक फिल्म देखी | संजय दत्त के जीवन पर आधारित फिल्म ‘संजू’ और हॉकी प्लेयर संदीप सिंह के जीवन संघर्ष को दर्शाती फिल्म ‘सूरमा’ इसका हालिया उदाहरण हैं, लेकिन अक्सर इस बात को लेकर ये विवाद होता हैं, कि क्या किसी व्यक्ति की छवि को दर्शकों की नज़रों में सुधारने के मकसद से ये फिल्में बनाई जाती हैं ?
फिल्म ‘संजू’ को लेकर भी दर्शकों का कुछ इसी तरह का असमंजस बना हुआ हैं | एक तरफ जहाँ फैंस इस फिल्म पर बेशुमार प्यार बरसा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर समाज के ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने इस फिल्म पर सवालिया निशान उठाए हैं | उनका कहना हैं, कि इस फिल्म के माध्यम से निर्देशक राजकुमार हिरानी ने संजय दत्त कि विवादित जिंदगी को साफ़-सुथरी ढंग से पेश करके मीडिया और प्रशासन का मजाक बना दिया हैं |
किसी भी बायोपिक फिल्म की बात करें, तो सबसे पहले ये बात मायने रखती हैं, कि ये फिल्म किस व्यक्ति के जीवन पर बनाई जा रही हैं ? क्या वो व्यक्ति इतना योग्य है कि उस पर बायोपिक फिल्म बनाई जाए ? बायोपिक फिल्म का उद्देश्य समाज में लोगों को सच्चाई से अवगत कराना और उन्हें अच्छे कामों के लिए प्रेरित करना होना चाहिए | किसी भी व्यक्ति के जीवन संघर्ष को बड़े पर्दे पर तब लाना चाहिए, जब उससे लोगों को हौसला और आत्मविश्वास मिले | अगर फिल्म किसी की छवि सुधारने के उद्देश से बनाई जा रही हैं, तो ये व्यर्थ ही हैं |
वैसे बात करें बॉलीवुड की यहाँ बायोपिक फिल्में अच्छे कारणों से ही बनाई जाती हैं, ना कि किसी स्वार्थ की भावना से |
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