मोदी सरकार द्वारा 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का अभियान शुरू किया गया था, बेटी पढ़ाओ का तो पता नहीं , हां मगर बचाओ की ओर जरूर ध्यान दिया गया है आज वह अभियान रंग लाता हुआ दिखाई दे रहा है| इस अभियान से एक पिता को अपनी लड़की को पढ़ाने के लिए मुआवजा मिला हो या ना मिला हो| लड़कियों को कोई फायदा हुआ हो या ना हुआ हो, मगर इस अभियान से कुछ नहीं तो समाज की सोच जरूर बदली है|
किसने सोचा था कि कभी समाज की सोच भी बदलेगी क्योंकि समाज की सोच बदलने का मतलब भैंस के सामने बीन बजाने जैसा होता है जिस समाज में कभी स्त्रियों को लेकर भारी आपत्ति रहती थी तथा उनको उचित सम्मान नहीं दिया जाता था आज वह समाज बिल्कुल इसके विपरीत हो गया है| जिस समाज में अगर किसी के घर लड़की पैदा हो जाती थी तो वह तुरंत मुंह लटका लेते थे| जिस समाज में कन्या को जन्म लेने से पहले ही उसकी भ्रूण हत्या कर दी जाती थी उसको कोख में ही मार दिया जाता था, आज उस समाज का नजरिया बिल्कुल बदल चुका है|
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) की और से जारी आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में कुल 4027 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें से 2400 के करीब लड़कियों थी, यही 2017-18 में 3927 बच्चे, 2016-17 में 3788 बच्चे और 2015-16 में कुल 3677 बच्चे गोद लिए गए| महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार लोगों का नजरिया लड़कियों के प्रति बदल गया है| महाराष्ट्र में 845 बच्चे गोद लिए गए जिनमें से 477 लड़कियां थी| दिल्ली में 153 बच्चे गोद लिए गए जिनमें से 103 लड़कियां और हरियाणा में 72 बच्चे गोद लिए गए जिनमें से 39 लड़कियां थी|
