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विश्व पर्यटन दिवस की शुरुआत 1980 से हुई ‘यू एन डब्ल्यू टी ओ’ का ऐसा मानना है कि यह 27 सितंबर विश्व पर्यटन में ‘एक मील का पत्थर थी’ 1970 में मेक्सिको देश में एक बैठक में आए IUOTO हुई थी, लेकिन उसके बाद यह दिवस मनाने के लिए 10 साल लग गए ।
पर्यटन से लाभ
यह ऐसा कार्य है जिससे समाज के सभी वर्ग के लोगों को लाभ होता है। यह जिन देशों में जाते हैं। वहां की प्रगति, रहन-सहन, रीति – नीति, संस्कृति परंपरा आदि विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। इससे उनकी रचनाओं में देशकाल का यथार्थ वर्णन होता है। प्राचीन काल में भी कवि और विद्वान पर्यटन करते थे, यही कारण है कि उनकी रचनाओं में प्रकृति तथा देशकाल का यथार्थ चित्रण दिखाई देता है।
महाकवि देव ने यदि पूरे भारत में पर्यटन ना किया होता तो ‘जातीविलास’ जैसी रचना वे न कर पाते। गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास, केशवदास आदि सभी कवियों की रचनाएं उनके पर्यटन का प्रमाण देती हैं। माघ, भारवि, बाणभट्ट, भवभूति आदि कवियों ने यदि भ्रमण ना किया होता तो उनकी रचनाओं में इतने विभिन्न और स्वाभाविक वर्णन नहीं मिल पाते।
अंग्रेजी के कवि
कीट्स, शैली, मिल्टन, शेक्सपीसयर आदि सभी ने पर्यटन किया था। उनकी रचनाओं पर इसके प्रभाव भी स्पष्ट है।
वर्तमान युग में तो इसका महत्व और भी बढ़ गया है। विश्वविख्यात कवि रविंद्रनाथ टैगोर, पंत जी तथा अनेक कवियों ने देश - विदेश की यात्राएं की हैं और अपने ज्ञान तथा भावना की भूमि को व्यापक बनाया है। सर राधाकृष्णन, पंडित जवाहरलाल नेहरू आदि महानुभावों ने पर्यटन से पर्याप्त लाभ उठाया है।
भारतवर्ष और विशेषकर हिंदू समाज एक ऐसा समाज है जिसमें जीवन उपयोगी बातों को धार्मिक दृष्टिकोण प्रदान कर दिया गया है। भारतीय ऋषियों और मनीषियों ने धर्म को जीवन के विभिन्न अंगों से समन्वित कर दिया है। भारतीय पद्धति में पर्यटन अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष सभी फलों का दाता है। परमेश्वर की सौंदर्य सृष्टि में अनेक विचित्रतायें हैं और उनका ज्ञान पर्यटन द्वारा प्राप्त हो सकता है।