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Seema Thakur

Creative director | Posted on |


अरुंधति रॉय - The God of Small Things

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हमे अपने जीवन में किसे प्रेम करना चाहिए और किसे नहीं? क्या हमे अपने जीवनसाथी चुनने का हक़ नहीं है? क्या हो यदि आप उससे प्रेम कर बैठो जिससे आपको प्रेम नहीं करना चाहिए? कौन तय करता है कि हमे किससे प्रेम करना चाहिए और कितना?


1997 में Booker Award जीतने वाली किताब The God of Small Things यकीनन दुनिया की सर्वोच्च किताबों में से एक है | यहाँ ऐसे एक या दो कारण नहीं है जिनसे आप इस किताब को सबसे अच्छी किताब कह सकते हैं बल्कि ऐसे अनेक कारण हैं जो इस किताब को सबसे अनूठा व ख़ास बनाते है | यह अरुंधति रॉय की पहली किताब थी और केवल इस किताब ने ही उन्हें दुनिया भर में इतनी ख्याति दिलाई जितनी लोगो को दस पंद्रह किताबें लिखकर भी नहीं मिलती |अरुंधति रॉय केरला के आयमनम में रहती थी जब उन्होंने इस किताब को लिखा | यह किताब पूरी तरह से सत्य नहीं है परन्तु विभिन्न सत्य घटनाओ से प्रेरित है | The god of small things एक ऐसी कहानी है जो आपको निःशब्द कर देती है |


अरुंधति रॉय - The God of Small Things


The god of small things को खास बनाने वाले कारण : -


साहित्यिक परिदृश्य


भारतीय साहित्य केवल हिंदी या बांग्ला तक सीमित नहीं है, यह हमे अरुंधति रॉय ने बताया है | The god of small things इंग्लिश भाषा में लिखी गयी जिसमे उन्होंने साहित्य का वह रूप प्रस्तुत किया है जिसे आज के समय के लेखक शायद ही कभी प्रस्तुत कर पाएं | यह किताब भूतकाल और वर्तमान के बीच चलती एक कहानी को आपके समक्ष प्रस्तुत करती है जिसमे हर एक संवाद , हर एक दृश्य आपके मनोमस्तिष्क में उतर जाता है | आप चाहे भी तो इस किताब को कभी आधा पढ़कर छोड़ नहीं सकते, आपको इसका भविष्य पता होगा फिर भी आप इसे पढ़ना चाहेंगे | यह वह कहानी है जिसका अंत आपको पता है परंतू उसके सफर से रूबरू होना आपका मसकद बन जाता है | भाषा व्याकरण की दृष्टि से शायद ही भारत में कोई और किताब है जिसे विदेशो में भी उसकी भाषा और लेखन के लिए इतनी सराहना मिली हो |


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सत्य व कटाक्ष


The God of Small Things एक सत्य है या कहिये भारत का एक कटु सत्य है जिससे आप परिचित तो हैं परन्तु उसकी गहराइयो से वाकिफ नहीं है | अरुंधति रॉय ने इस किताब में दक्षिण भारत की स्तिथि को उजागर किया है | यह कहानी आपको ऐसे सत्य से वाकिफ कराती है जो आपको ख़ुशी से भर देगा परन्तु साथ ही आपकी आँखों में आंसू भी देगा | कहानी का मुख्य भाग है उसका कटाक्ष | अरुंधति रॉय ने बड़ी ही आसानी से भारत पर, भारतीयों पर और प्रशासन पर कटाक्ष के माध्यम से चोट की है | वह यह नहीं कहती की यह "बुरा" है बल्कि वह यह कहती हैं की यह "अच्छा" नहीं है | आपको यह किताब पढ़कर महसूस होगा कि किसी के जीवन का मोल दुसरो के लिए कितना कम होता है, ज़िन्दगी अपनी हो तो ज़िन्दगी है, किसी और की है तो मज़ाक से ज़्यादा कुछ नहीं |


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मार्मिकता


जब मैंने यह किताब पढ़ी थी, जो पहला ख्याल मेरे मन में आया था वह यह था कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि अपने घर में सुकून की सांस ले ले रही हूँ | मेरे सर पर छत है, रगों में खून है और जीवन में ख़ुशी है, और सबसे महत्वपूर्ण मैं "जी" रही हूँ | कहानी में ऐसे बहुत से मार्मिक क्षण आते हैं जो आपको सोचने पर मज़बूर करते हैं की लोग इतने निर्दय कैसे हो सकते हैं कि उनके लिए किसी का दर्द समझना इतना मुश्किल हो जाता है कि वह आँखे खोलकर भी अंधे बनजाते हैं, कान होते हुए भी बेहरे हो जाते हैं, और मुँह होते हुए भी गूंगे |



प्रेम


"प्रेम" एक ऐसा शब्द जो आपके जीवन के हर एक शब्द को बेजान कर देता है | किससे प्रेम करना चाहिए और कितना ? यह वह सवाल है जिसका जवाब हममे से शायद ही किसी के पास होगा | अरुंधति रॉय आपको जिस प्रेम कि परिभाषा इस पुस्तक में देतीं है उसकी व्याख्या कर पाना मुश्किल है | वह ऐसे बहुत से सवालों के जवाब देती हैं जिन सवालों के बारे में हमने सोचने का भी कभी प्रयत्न नहीं किया होगा |



यह कहानी कोई परियों की कहानी नहीं है बल्कि एक सत्य है जिसमे दर्द है, जलन है, मृत्यु है, ज़ख्म है, और जिसका अंत आपको आंसू देता है, जो ख़ुशी के नहीं होते |