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आकाश जैस्वाल

Entertainment Journalist | Posted on | Entertainment


कंटेंट नहीं बल्कि मार्केटिंग है बॉलीवुड का नया ‘किंग’ !

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कंटेंट नहीं बल्कि मार्केटिंग है बॉलीवुड का नया ‘किंग’  !



बॉलीवुड को लेकर फैंस जितना उत्साहित होते हैं उतना ही आज के दौर में सोशल मीडिया पर उसको लेकर कई सारे मीम्स देखने को मिलते हैं | क्या हमने कभी सोचा है कि आज के युवा (इंटरनेट पर सबसे सक्रिय रहनेवाली ऑडियंस) बॉलीवुड और हिंदी फिल्मों को लेकर इतने सीरियस क्यों नहीं हैं? इसपर जोक्स बनाने से लेकर इसकी खिल्ली उड़ाने से भी नहीं कतराते | देखा जाए तो इसकी असली वजह खुद बॉलीवुड ही है | आज बॉलीवुड ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां उसके कंटेंट में कोई क्रिएटिविटी और यूनिकनेस नहीं है | हम ये नहीं कहते कि बॉलीवुड की हर फिल्म में ऐसा होता है लेकिन ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों में इस चीज की कमी देखी जा सकती है |


अक्सर दर्शक इस बात की भी शिकायत करते हैं कि कई बार ऐसी फिल्मों निर्देशक और प्रोड्यूसर्स बनाते हैं जो हिट होने के पात्र भी नहीं बावजूद इसके वो बॉक्स ऑफिस पर कमर्शियली हिट साभित हो जाती है जबकि कई ऐसी फिल्मों जो पहचान और सम्मान के पात्र होती हैं उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है | इसका सबसे बड़ा उदहारण है फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ |आप अगर यूट्यूब पर जाकर इस फिल्म को लेकर दर्शकों के रिव्युज देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि स्टोरी और कंटेंट के मामले में इस फिल्म में कई साडी खामिया हैं | लेकिन इसके बाद भी ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों कमा रही है | वहीं दूसरी और परमाणु परिक्षण की सफल कहानी को दर्शाती फिल्म ‘परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण’ ने शायद ही उतनी अच्छी कमाई की है | हम यहां किसी फिल्म का परचार नहीं कर रहे हैं बल्कि पात्र और अपात्र फिल्म के बीच का फर्क आपको समझा रहे हैं. ऐसा क्या हुआ कि बेकार स्टोरी लाइन के बावजूद भी ‘वीरे दी वेडिंग’ सफल रही जबकि धमाकेदार कहानी के बाद ही ‘परमाणु’ उतनी कामयाबी नहीं पा सकी? इसकी असली वजह है फिल्मों की मार्केटिंग और उसका प्रचार |


आज हर फिल्म को प्रमोट करने के लिए पब्लिक रिलेशन कंपनियों से मदद ली जाती है और करोड़ों खर्च कर दिए जाते हैं. अगर आप कम बजट वाले प्रोड्यूसर हैं तो फिर ये मुश्किल है कि आपकी फिल्म को भी उसकी पात्रता अनुसार सफलता मिले | दर्शकों के सामने फिल्म का इतना प्रभावशाली प्रचार कर दिया जाता है कि वो अच्छे और बेकार कंटेंट में फर्क नहीं कर पाते हैं | किसी भी फिल्म को देखने से पहले हम रिसर्च नहीं करते बल्कि जिन फिल्मों के बार में हमने ज्यादा सुना है और प्रचार देखा है उन फिल्मों को देखना पसंद करते हैं |


फिल्म ‘रईस’ ‘जब हैरी मेट सजल’ और ट्यूबलाइट ‘ साल 2017 की कुछ ऐसी फ्लॉप फिल्में हैं जिनके फैल होने की उम्मीद दर्शकों ने नहीं की होगी | इन फिल्मों की कहानी और स्क्रिप्ट में दम नहीं था लेकिन इसकी मार्केटिंग दमदार तरह से की गई. इसी के चलते दर्शक इन फिल्मों से काफी उम्मीद लगाए बैठे थे और इनकी रिलीज पर भरमार टिकटें भी खरीदी गई | लेकिन इनके कंटेंट के चलते दर्शक काफी नाराज हुए और नतीजा ये रहा कि ये फिल्म फ्लॉप हुई | आज बड़े फिल्म बैनर्स करोड़ों रुपए खर्च करके फिल्म का प्रमोशन करते हैं और फैन क्लब्स की भी मदद ली जाती है | इसमें कोई बुराई भी नहीं है लेकिन एक दर्शक होने के नाते हमें एक बार ये जरूर सोचना चाहिए कि हम एक फिल्म को क्यों देखना चाहते हैं और इसमें खास बात क्या है? हां! अगर आप ये कहें कि फलाना फिल्म में आपके पसंदीदा स्टार ने काम किया है तब तो सोचने का कोई सवाल ही नहीं आता क्योंकी फैन्स और पसंद का कोई कारण नहीं होता |


अंत में यही कहना चाहूंगा कि फिल्म चाहे छोटे बजट की हो या फिर किसी बड़े स्टार की, सिनेमाघरों में उसे देखने जाने से पहले उसके बारे में रिसर्च जरूर करें ताकि हम अच्छे और योग्य कंटेंट पर अपनी मेहनत की कमाई खर्च सकें और साथ ही योग्य फिल्म को विजेता बना सकें |