जैसा कि आज सिर्फ विश्व पुस्तक दिवस ही नहीं बल्कि विश्व कॉपी राइट दिवस भी है । हर साल विश्व पुस्तक दिवस और विश्व कॉपी राइट दिवस 23 अप्रैल को मनाया जाता है । मुझे ऐसा लगता है, कि आज कल इंटरनेट के ज़माने में कुछ लोग पुस्तक ही नहीं पड़ते क्योंकि सभी जानकारी इंटरनेट पर ही मिल जाती है । इसलिए एक तरफ देखा जाए तो पुस्तक दिवस बस नाम का रह गया है । परन्तु हाँ! कुछ लोग हैं जो कि आज भी पुस्तक पढ़ते हैं । ऐसे लोगों के लिए आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ।
विश्व पुस्तक दिवस की शुरआत 1923 में स्पेन के पुस्तक विक्रेताओं द्वारा एक प्रसिद्ध लेखक "मीगुयेल डी सरवेन्टीस" सम्मानित करने के लिए आयोजन के रूप में की गई और "मीगुयेल डी सरवेन्टीस" के देहांत भी 23 अप्रैल को हुआ जिसके कारण इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
(Courtesy : HindiKiDuniya )
गुलज़ार के कुछ नज़्म -
किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
बड़ी हसरत से तकती हैं
जो क़द्रें वो सुनाती थीं
कि जिन के सेल कभी मरते नहीं थे
वो क़द्रें अब नज़र आती नहीं घर में
जो रिश्ते वो सुनाती थीं
वो सारे उधड़े उधड़े हैं
कोई सफ़्हा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ़्ज़ों के मअ'नी गिर पड़े हैं
बिना पत्तों के सूखे तुंड लगते हैं वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई मअ'नी नहीं उगते
बहुत सी इस्तेलाहें हैं
(Courtesy : newsnation )
जो मिट्टी के सकोरों की तरह बिखरी पड़ी हैं
गिलासों ने उन्हें मतरूक कर डाला
ज़बाँ पर ज़ाइक़ा आता था जो सफ़्हे पलटने का
अब उँगली क्लिक करने से बस इक
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है पर्दे पर
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रेहल की सूरत बना कर
नीम सज्दे में पढ़ा करते थे छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और
महके हुए रुकए
किताबें माँगने गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उन का क्या होगा
वो शायद अब नहीं होंगे!
(Courtesy : Bollywood Hungama
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