तो ऐसी है भारत के पत्रकारों की मौजूदा स्थिति - letsdiskuss
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तो ऐसी है भारत के पत्रकारों की मौजूदा स्थिति


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pravesh chuahan,BA journalism & mass comm | Posted on


हाल ही में पत्रकारों को लेकर सर्वे कराया गया था. ताकि पता लगाया जा सके पत्रकार मौजूदा सरकार की मौजूदगी में किन किन समस्याओं से जूझ रहे हैं. जिस तरह पत्रकारों की स्थिति आज के समय में हो गई है आप ऐसा भी कह सकते हैं कि आज जो पत्रकारों की स्थिति बनी हुई है यह उनके ही किए हुए कर्मों का दंड है. शायद ही आजादी से लेकर 2014 तक ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई होगी. मगर 2014 के बाद यानी नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद पत्रकारों की स्थिति दिन-ब-दिन खस्ता होती जा रही है.

पत्रकारों को अपना काम करने के दौरान तमाम तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. पिछले दिनों गैर लाभकारी संगठन ‘द विजन फाउंडेशन’ और देश में पत्रकारों के प्रमुख संगठन ‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स-इंडिया (एनयूजे-आई)’ द्वारा कराए गए सर्वे में भी इसी तरह की बातें सामने आई हैं.

पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया समूहों के लिए सुरक्षा प्रावधानों पर देशभर के पत्रकारों के बीच तीन नवंबर से 14 नवंबर के बीच यह सर्वे किया गया था. इस सर्वे का उद्देश्य पत्रकारों पर हमलों अथवा प्रताड़ना के मामलों को समझना और इस बारे में समय रहते प्रभावी कार्ययोजना बनाना है.

सर्वे के दौरान यह बात सामने आई कि देश में करीब 61 प्रतिशत पत्रकारों को अपनी खबरों के कारण कभी-न-कभी धमकी अथवा अन्य प्रकार के दबाव का सामना करना पड़ता है. पत्रकारों पर हमले की बढ़ती घटनाओं के कारण अभिव्यक्ति की आजादी का खतरा भी बढ़ रहा है.इस सर्वे में देशभर के करीब 823 पत्रकारों ने भाग लिया, जिनमें 21 प्रतिशत महिला पत्रकार शामिल रहीं. सर्वे में 266 पत्रकार प्रिंट मीडिया के, 263 पत्रकार ऑनलाइन मीडिया के और 98 पत्रकार टेलिविजन से संबद्ध रहे.

सर्वे में यह भी सामने आया है कि इस साल अपने काम के कारण अब तक चार पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, जबकि पिछले साल देश में पांच पत्रकारों की हत्या हुई थी. सर्वे में शामिल 46 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे- ट्विटर और फेसबुक पर धमकी मिली, जबकि 17 प्रतिशत का मानना था कि उन्हें वॉट्सऐप अथवा प्राइवेट मैसेज के माध्यम से धमकी दी गई.

करीब 74 प्रतिशत पत्रकारों का मानना था कि उनके संस्थान में तथ्यों की सटीकता पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता था जबकि 13 प्रतिशत का मानना था कि उनका संस्थान हमेशा विशेष प्रकार के समाचारों को प्राथमिकता देता है. करीब 33 प्रतिशत पत्रकारों ने 21वीं सदी में पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बढ़ते हमले को माना, जबकि करीब 21 प्रतिशत पत्रकारों का मानना था कि आने वाले समय में फर्जी और पेड समाचार सबसे बड़ी चुनौती बनेंगे.

करीब 18 प्रतिशत पत्रकारों का कहना था कि इन दिनों न्यूज वेबसाइट की संख्या लगातार बढ़ने के साथ ही लोगों की समाचारों के प्रति विश्वसनीयता घटी है. हालांकि इन्हें यह भी पता होना चाहिए कि अगर आज के समय में अखबार और न्यूज़ चैनल कि सचाई कहीं छिप गई है तो वह न्यूज़ वेबसाइट है जो स्वतंत्र रूप से लोगों तक सच सामने पहुंचा रही है.

इस सर्वे में यह भी सामने आया कि करीब 44 प्रतिशत पत्रकारों ने उन्हें मिली धमकी अथवा प्रताड़ना की शिकायत अपने संस्थान से की जबकि इस तरह के मामलों में महज 12 प्रतिशत पत्रकारों ने ही पुलिस अथवा अन्य कानूनी एजेंसियों को इससे अवगत कराया. जिन पत्रकारों को सर्वे में शामिल किया गया, उनमें से करीब 61 प्रतिशत पत्रकारों ने अपने काम की वजह से कभी न कभी हमले अथवा धमकी की बात स्वीकारी, जबकि 76 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि उनके मीडिया संस्थानों में सुरक्षा संबंधी किसी तरह का प्रावधान नहीं हैं. इन पत्रकारों का यह भी मानना था कि उन्हें किसी भी प्रकार के सुरक्षा प्रशिक्षण नहीं दिया गया है और न ही कोई सुरक्षा प्रोटोकाल है.

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम की रिपोर्ट ने पहले ही दावा किया था कि भारत में प्रेस की स्थिति लगातार खस्ता होती जा रही है देखिए क्या कहती है वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम की रिपोर्ट:-

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019' के अनुसार प्रेस की आजादी के मामले में नॉर्वे शीर्ष पर है. रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनियाभर में पत्रकारों के प्रति दुश्मनी की भावना बढ़ी है. इस वजह से भारत में बीते साल अपने काम के कारण कम से कम 6 पत्रकारों की हत्या कर दी गई.

रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पत्रकारों को कई खतरों का सामना करना पड़ता है.विश्लेषण में आरोप लगाया गया है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं. हिंदुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणित अभियानों पर चिंता जताई है.

प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान फिसलकर 140वें, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान 3 पायदान लुढ़ककर 142 वें और बांग्लादेश 4 पायदान लुढ़ककर 150वें स्थान पर है.बता दें कि पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) या रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स यह रिपोर्ट जारी करता है.







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हाल ही में पत्रकारों को लेकर सर्वे कराया गया था. ताकि पता लगाया जा सके पत्रकार मौजूदा सरकार की मौजूदगी में किन किन समस्याओं से जूझ रहे हैं. जिस तरह पत्रकारों की स्थिति आज के समय में हो गई है आप ऐसा भी कह सकते हैं कि आज जो पत्रकारों की स्थिति बनी हुई है यह उनके ही किए हुए कर्मों का दंड है. शायद ही आजादी से लेकर 2014 तक ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई होगी. मगर 2014 के बाद यानी नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद पत्रकारों की स्थिति दिन-ब-दिन खस्ता होती जा रही है.

पत्रकारों को अपना काम करने के दौरान तमाम तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. पिछले दिनों गैर लाभकारी संगठन ‘द विजन फाउंडेशन’ और देश में पत्रकारों के प्रमुख संगठन ‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स-इंडिया (एनयूजे-आई)’ द्वारा कराए गए सर्वे में भी इसी तरह की बातें सामने आई हैं.

पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया समूहों के लिए सुरक्षा प्रावधानों पर देशभर के पत्रकारों के बीच तीन नवंबर से 14 नवंबर के बीच यह सर्वे किया गया था. इस सर्वे का उद्देश्य पत्रकारों पर हमलों अथवा प्रताड़ना के मामलों को समझना और इस बारे में समय रहते प्रभावी कार्ययोजना बनाना है.

सर्वे के दौरान यह बात सामने आई कि देश में करीब 61 प्रतिशत पत्रकारों को अपनी खबरों के कारण कभी-न-कभी धमकी अथवा अन्य प्रकार के दबाव का सामना करना पड़ता है. पत्रकारों पर हमले की बढ़ती घटनाओं के कारण अभिव्यक्ति की आजादी का खतरा भी बढ़ रहा है.इस सर्वे में देशभर के करीब 823 पत्रकारों ने भाग लिया, जिनमें 21 प्रतिशत महिला पत्रकार शामिल रहीं. सर्वे में 266 पत्रकार प्रिंट मीडिया के, 263 पत्रकार ऑनलाइन मीडिया के और 98 पत्रकार टेलिविजन से संबद्ध रहे.

सर्वे में यह भी सामने आया है कि इस साल अपने काम के कारण अब तक चार पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, जबकि पिछले साल देश में पांच पत्रकारों की हत्या हुई थी. सर्वे में शामिल 46 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे- ट्विटर और फेसबुक पर धमकी मिली, जबकि 17 प्रतिशत का मानना था कि उन्हें वॉट्सऐप अथवा प्राइवेट मैसेज के माध्यम से धमकी दी गई.

करीब 74 प्रतिशत पत्रकारों का मानना था कि उनके संस्थान में तथ्यों की सटीकता पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता था जबकि 13 प्रतिशत का मानना था कि उनका संस्थान हमेशा विशेष प्रकार के समाचारों को प्राथमिकता देता है. करीब 33 प्रतिशत पत्रकारों ने 21वीं सदी में पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बढ़ते हमले को माना, जबकि करीब 21 प्रतिशत पत्रकारों का मानना था कि आने वाले समय में फर्जी और पेड समाचार सबसे बड़ी चुनौती बनेंगे.

करीब 18 प्रतिशत पत्रकारों का कहना था कि इन दिनों न्यूज वेबसाइट की संख्या लगातार बढ़ने के साथ ही लोगों की समाचारों के प्रति विश्वसनीयता घटी है. हालांकि इन्हें यह भी पता होना चाहिए कि अगर आज के समय में अखबार और न्यूज़ चैनल कि सचाई कहीं छिप गई है तो वह न्यूज़ वेबसाइट है जो स्वतंत्र रूप से लोगों तक सच सामने पहुंचा रही है.

इस सर्वे में यह भी सामने आया कि करीब 44 प्रतिशत पत्रकारों ने उन्हें मिली धमकी अथवा प्रताड़ना की शिकायत अपने संस्थान से की जबकि इस तरह के मामलों में महज 12 प्रतिशत पत्रकारों ने ही पुलिस अथवा अन्य कानूनी एजेंसियों को इससे अवगत कराया. जिन पत्रकारों को सर्वे में शामिल किया गया, उनमें से करीब 61 प्रतिशत पत्रकारों ने अपने काम की वजह से कभी न कभी हमले अथवा धमकी की बात स्वीकारी, जबकि 76 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि उनके मीडिया संस्थानों में सुरक्षा संबंधी किसी तरह का प्रावधान नहीं हैं. इन पत्रकारों का यह भी मानना था कि उन्हें किसी भी प्रकार के सुरक्षा प्रशिक्षण नहीं दिया गया है और न ही कोई सुरक्षा प्रोटोकाल है.

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम की रिपोर्ट ने पहले ही दावा किया था कि भारत में प्रेस की स्थिति लगातार खस्ता होती जा रही है देखिए क्या कहती है वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम की रिपोर्ट:-

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019' के अनुसार प्रेस की आजादी के मामले में नॉर्वे शीर्ष पर है. रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनियाभर में पत्रकारों के प्रति दुश्मनी की भावना बढ़ी है. इस वजह से भारत में बीते साल अपने काम के कारण कम से कम 6 पत्रकारों की हत्या कर दी गई.

रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पत्रकारों को कई खतरों का सामना करना पड़ता है.विश्लेषण में आरोप लगाया गया है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं. हिंदुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणित अभियानों पर चिंता जताई है.

प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान फिसलकर 140वें, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान 3 पायदान लुढ़ककर 142 वें और बांग्लादेश 4 पायदान पे लुढ़ककर 150वें स्थान पर है.बता दें कि पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) या रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स यह रिपोर्ट जारी करता है.








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