"तुलसी" हर घर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली और भगवान के बराबर दर्ज़ा रखती है | तुलसी हिन्दू धर्म में बहुत ही मान्यता रखती है | तुलसी को
"तुलसी माता " कहा जाता है |
तुलसी माँ :-
तुलसी माँ का इंसान रूप में वृंदा नाम था | जिनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था | राक्षस कुल में होने के बाद भी वह भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी | वृंदा का विवाह राक्षस कुल के दानव जलंधर के साथ हो गया | जलंधर ने समुद्र मंथन के समय समुद्र से जन्म लिया | उनकी उत्पत्ति जल से हुई इसलिए उनका नाम जलंधर पड़ गया |
वृंदा बहुत ही पतिव्रता स्त्री थी, और जब तक उसका सत उसके अंदर जीवित था, तब तकउसके पति को कोई भी किसी भी प्रकार का नुक्सान नहीं पंहुचा सकता था | एक समय जब जलंधर देवताओं से युद्ध के लिए गए, तो वृंदा ने संकल्प किया कि जब तक मेरा पति युद्ध से वापस नहीं आएगा तब तक मैं पूजा में बैठी रहूंगी |
यह बात सभी देवता जानते थे, कि जलंधर का सर्वनाश तब तक निश्चित नहीं जब तक वृंदा का सत उसके अंदर जीवित है | वृंदा का सत भंग करने के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे, और उन्होंने विष्णु जी से आग्रह किया कि वो वृंदा का सत भंग करें, ताकि जलंधर का नाश हो सके और धरती पर राक्षस साम्राज्य का अधिकार होने से बच जाये |
विष्णु भगवान ने सभी का आग्रह माना और जलंधर का रूप लेकर वृंदा के पास गए | वृंदा ने अपने पति को युद्ध से वापस आता देखा और पूजा से उठ कर उनके चरण छूने लगी तभी जलंधर का कटा हुआ सिर वृंदा के पूजा स्थान पर आ गया | वृंदा ने जब देखा तो उसने जलंधर का रूप लिए इंसान को उसके असली रूप में आने को कहा और जैसे ही भगवान विष्णु ने अपना रूप धारण किया तो वृंदा ने उन्हें पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया |
वृंदा के इस श्राप से भगवान विष्णु पत्थर के हो गए |माता लक्ष्मी के बहुत आग्रह के बाद उन्होंने विष्णु जी से अपना श्राप वापस ले लिया, और उस दिन से विष्णु भगवान का एक रूप पत्थर का हो गया | उसके बाद वृंदा ने अपने पति की चिता पर ही बैठकर अपनी जान दे दी | वृंदा की चिता की राख से एक पौधे ने जन्म लिया जो "तुलसी " कहलाता है, और भगवान विष्णु का पत्थर वाला रूप "शालिग्राम "कहलाता है | विष्णु ने वृंदा को एक वरदान दिया कि आज से हम दोनों को एक साथ पूजा जाएगा और मेरा भोग बिना तुलसी के कभी नहीं लगेगा | तुलसी को भगवान के समान ही पूजा जाएगा |