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सॉलिड स्टेट बैटरी (solid state battery) एक ऐसी बैटरी तकनीक है जिसमें लिक्विड या पॉलीमर जेल इलेक्ट्रोलाइट्स की बजाय ठोस यानी सॉलिड इलेक्ट्रोड्स और इलेक्ट्रोलाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह सॉलिड स्टेट बैटरी सामान्य लीथियम-ऑयन या लीथियम-पॉलीमर बैटरियों से अलग होती है।
सॉलिड इलेक्ट्रोलाइट्स की खोज सबसे पहले उन्नीसवीं शताब्दी में हुई। पर कम ऊर्जा घनत्व जैसी कुछेक कमियों के चलते इसका व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल नहीं हो सका। पर अब इक्कीसवीं सदी में सॉलिड स्टेट बैटरी की बेमिसाल ख़ूबियां देखते हुये लोगों में इसके प्रति नये सिरे से दिलचस्पी बढ़ी है। इलेक्ट्रिक मोटर वाहन निर्माता कंपनियां खासतौर पर इस बैटरी तकनीकी को लेकर उत्साहित हैं।
सॉलिड स्टेट बैटरी के फ़ायदे --
सॉलिड स्टेट बैटरी में लिक्विड लीथियम-ऑयन बैटरियों की तरह ज्वलनशीलता, सीमित वोल्टेज या खराब प्रदर्शन आदि से संबंधित समस्यायें नहीं आने पातीं। इसमें सॉलिड इलेक्ट्रोलाइट्स के रूप में सिरेमिक जैसे कि फॉस्फेट, ऑक्साइड या सल्फाइड और ठोस पॉलीमर का इस्तेमाल होता है। सॉलिड स्टेट बैटरी तकनीक उच्च ऊर्जा घनत्व प्रदान करती है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने से सामान्य वाणिज्यिक बैटरियों में पाये जाने वाले कार्बनिक इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे जहरीले पदार्थों के प्रयोग से बचा जा सकता है।
ज्यादातर लिक्विड इलेक्ट्रोलाइट्स ज्वलनशील होते हैं जबकि सॉलिड स्टेट बैटरी में इस्तेमाल होने वाले ठोस इलेक्ट्रोलाइट्स गैर-ज्वलनशील। इसीलिये सॉलिड स्टेट बैटरियों में आग पकड़ने का ख़तरा कम होता है। इसके अलावा ये बैटरियां तेज चार्जिंग की इज़ाजत देती हैं साथ ही टिकाऊ भी होती हैं।
सॉलिड स्टेट बैटरी का इतिहास --
सॉलिड स्टेट बैटरी के आविष्कार की बुनियाद उन्नीसवीं सदी में ही पड़ गई थी; जब 1831-34 के दौरान माइकल फैराडे ने सिल्वर सल्फाइड और लेड फ्लोराइड जैसे ठोस इलेक्ट्रोलाइट्स की खोज की। इस दिशा में धीरे-धीरे काम चलता रहा। फिर 1950 के आते-आते कई विद्युत-रासायनिक प्रणालियों में सिल्वर ऑयन का इस्तेमाल करते हुये ठोस इलेक्ट्रोलाइट्स लगाये गये। पर उनमें कम ऊर्जा घनत्व और कम सेल-वोल्टेज व उच्च आंतरिक प्रतिरोध जैसी दिक्कतें थीं। इसके कुछ समय बाद 1990 में ओक रिज नैशनल लैबोरेटरी ने पतली लीथियम-ऑयन बैटरी बनाने के क्रम में ठोस यानी सॉलिड स्टेट इलेक्ट्रोलाइट्स का एक नया वर्ग विकसित किया।
सॉलिड स्टेट बैटरी का विकास और संभावनायें --
तकनीक के विकास के साथ ही मोटर-परिवहन उद्योगों से जुड़े शोधार्थियों में सॉलिड स्टेट बैटरी को लेकर एक नये सिरे से दिलचस्पी जगी। 2010 के बाद से दुनिया की करीब सारी प्रमुख मोटरवाहन कंपनियां इस होड़ में लग गईं। इनमें टोयोटा सबसे आगे है। जिसके पास सॉलिड स्टेट बैटरी से संबंधित सबसे ज्यादा पेटेंट है। बता दें कि इस कार निर्माता कंपनी ने विगत सितंबर 2021 में अपनी गाड़ियों में सॉलिड स्टेट बैटरी का इस्तेमाल करने को लेकर एक महत्वपूर्ण घोषणा भी की है।
समय के साथ सॉलिड स्टेट बैटरी संबंधी जरूरतें बढ़ती गईं, और इस पर काम भी चलता रहा। 2013 के दौरान कोलोराडो बोल्डर यूनिवर्सिटी शोधकर्ताओं ने ऑयरन और सल्फर से बने एक ठोस मिश्रित कैथोड के साथ एक सॉलिड स्टेट बैटरी विकसित की। इसमें पहले की तुलना में उच्च ऊर्जा क्षमता मौज़ूद थी। आगे 2017 में लीथियम-बैटरी के सह-आविष्कारक जॉन गडएनफ ने एक ग्लास इलेक्ट्रोलाइट और लीथियम, सोडियम अथवा पोटैशियम वाले क्षारयुक्त एनोड का इस्तेमाल करते हुये एक सॉलिड स्टेट बैटरी बनाने में सफलता पाई। आज दुनिया की लगभग सभी प्रमुख कार निर्माता कंपनियां बढ़ती बाजार मांग के मद्देनज़र स्वतंत्र रूप से सॉलिड स्टेट बैटरी की तकनीकी विकसित कर रही हैं।
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सॉलिड स्टेट बैटरी एक ऐसी बैटरी होती है जिसमें लिक्विड की जगह पर ठोस इलेक्ट्रोड्स का इस्तेमाल किया जाता है इस तरह सॉलिड स्टेट बैटरी लिथियम पॉलीमर बैटरी से भिन्न होती है। सॉलिड स्टेट बैटरी की खोज 19वीं शताब्दी में हुई थी। सॉलिड स्टेट बैटरी में इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रोलाइट्स अज्वलन सील होते हैं। इस बैटरी की सबसे बड़ी खासियत यही है।
सॉलिड स्टेट बैटरी का इस्तेमाल :-
सॉलिड स्टेट बैटरी का इस्तेमाल वाहनों आदि में किया जाता है यह वाहनों के लिए बहुत अच्छी बैटरी होती है।
इसका अधिकतर इस्तेमाल मोबाइल फोन के चार्जर में किया जाता है।
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