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shweta rajput

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क्या है मोदी सरकार का वो मास्टरस्ट्रोक जिसे हमेशा याद रखेगा पाकिस्तान ?


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मोदी सरकार 30 मई को अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा करने जा रही है। मोदी सरकार ने इस एक साल में विदेश नीति के मोर्चे पर कई उपलब्धियां हासिल कीं तो कुछ मामलों में असफलता हाथ लगी। हालांकि, मोदी सरकार ने पिछले एक साल में पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर घेरने और उसे पूरी दुनिया में अलग-थलग करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है। पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति की अहमियत के बावजूद तमाम देश उससे दूरी बनाते नजर आए।
2019 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने जो मैनिफेस्टो जारी किया था उसमें भी पाकिस्तान को लेकर आक्रामक रुख था। हालांकि अनुच्छेद 370 को हटाने की बात बीजेपी के एजेंडे में हमेशा से रही है। बीजेपी जब पूर्ण बहुमत से सत्ता में दोबारा आई और राजनाथ सिंह की जगह अमित शाह गृह मंत्री बने तो 370 संविधान से हटकर इतिहास का हिस्सा बन गया। मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर अपनी आक्रामक रणनीति का संदेश पहले कार्यकाल में ही दे दिया था। अब तक भारत अपनी सीमा की सुरक्षा अपनी सीमा के भीतर से ही करता था लेकिन पहली बार पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सैन्य ऑपरेशन को अंजाम दिया। पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए एक बार सर्जिकल स्ट्राइक की तो दूसरी बार एयर स्ट्राइक।
बीजेपी ने अपने 2019 के मैनिफेस्टो में कहा था, "हम आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों और संगठनों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर ठोस कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और ऐसे देशों तथा संगठनों को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने के लिए हम सभी जरूरी उपायों पर कार्य करेंगे।" मोदी सरकार ने पहले साल ही चुनावी मैनिफेस्टो पर आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान को अलग-थलग करने की तमाम कूटनीतिक कोशिशें कीं जो सफल भी रहीं।

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले एक साल में सबसे बड़ा कदम जम्मू-कश्मीर को लेकर उठाया। पांच अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म किया और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया। मोदी सरकार के इस मास्टरस्ट्रोक से पाकिस्तान हैरान रह गया।
मोदी सरकार ने अपने इस फैसले से चर्चा का रुख पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की तरफ मोड़ दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवाली के मौके पर कहा कि पाकिस्तान ने अवैध रूप से कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा कर रखा है जिसकी कसक उनके मन में बनी हुई है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने भी अपने एक बयान में कहा था कि पहले हम कश्मीर की बात करते थे, अब हम मुजफ्फराबाद (पीओके) को बचाने की योजना बनाने लग गए हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर समर्थन पाने की कोशिश की लेकिन उन्हें हर जगह से निराशा ही हाथ लगी। चीन की मदद से पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बंद कमरे में कश्मीर मुद्दे पर बैठक बुलाने में कामयाब रहा। हालांकि, इससे पाकिस्तान को कुछ खास हासिल ना हो सका। यूएस और फ्रांस ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मुद्दा करार दिया जिससे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में औपचारिक चर्चा का ना तो प्रस्ताव पेश हो सका और ना ही भारत के विरोध में कोई बयान आया। शीतयुद्ध के वक्त से ही UNSC में कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ देते आए रूस ने साफ कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सारे विवाद द्विपक्षीय स्तर पर ही सुलझाने जाने चाहिए।
कश्मीरी संघर्ष को फिलिस्तीन से जोड़कर उसे इस्लाम के चश्मे से दिखाने की पाक की तमाम कोशिशों के बावजूद उसे मुस्लिम दुनिया का भी साथ नहीं मिला। यूएई और मालदीव ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया। यूएई ने कुछ दिनों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने यहां के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी नवाजा था। मुस्लिम देशों में वर्चस्व रखने वाले सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ कोई बयान जारी नहीं किया।
मलेशिया और तुर्की को छोड़ दें तो पाकिस्तान को किसी भी मुस्लिम देश से सहयोग नहीं मिला। प्रधानमंत्री इमरान खान ने खुद इस कूटनीतिक हार को स्वीकार करते हुए कहा था कि मुस्लिम देशों के साथ भारत के व्यापक आर्थिक हित जुड़े हुए हैं और उनसे समर्थन जुटाना मुश्किल है।

आतंकवाद पर भी अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान
एक तरफ, जहां मोदी सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को कूटनीतिक पटखनी दी, दूसरी तरफ आतंकवाद के मुद्दे पर भी पाकिस्तान पूरी दुनिया में घिरता नजर आया। भारत ने लगातार पाकिस्तान के आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले कामों का पर्दाफाश किया और महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों से उसे घेरा। यहां तक कि पाकिस्तान ने खुद को आतंकी संगठनों के वित्तपोषण पर नजर रखने वाली संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) से ब्लैकलिस्ट होने से किसी तरह बचाया। अमेरिका ने भी पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर सख्त संदेश दिए और उसको दी जाने वाली फंडिंग में कटौती की।
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने एक इंटरव्यू में कहा था, "पाकिस्तान में राष्ट्रवाद की भावनाएं भले ही इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो लेकिन आतंकियों के पनाहगारों को लेकर दुनिया का सब्र टूट रहा है और पाकिस्तान के लिए ये बिल्कुल भी अच्छे संकेत नहीं हैं।

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