विसर्जन का अर्थ होता है जल में विलीन होना | किसी विशेष पूजा के बाद या फिर जिस मूर्ति का हम विसर्जन कर सकते हैं उनकी पूजा के बाद जब हम भगवान को घर से विदा करते हैं, और उनका विसर्जन जल में करते हैं तो इसे ही मूर्ति विसर्जन कहा जाता है | जिसका साफ़ अर्थ यह कह सकते हैं की मूर्ति का जल में विहीन होना विसर्जन कहलाता है | यह सबके लिए बहुत उत्साह भरे पल होते हैं, क्योंकि सभी लोग नाचते झूमते मंगल गीत गाते भगवान को कहते है कि वह अगले वर्ष फिर से ढेरों खुशियाँ लेकर आए और हमारे सभी दुःख दर्द अपने साथ साथ जल में विसर्जित कर दें |
(courtesy-hindustan)
आपको बताते है भगवान की मूर्ती विसर्जन के वक़्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए -
- ध्यान रहे मूर्ती खंडित न हो -
हमेशा व्यक्ति पूजा ख़त्म होने के बाद लापरवाही कर देता है, इसलिए ध्यान रहे की बिना लापरवाही के विसर्जन के पहले मूर्ती खंडित न हो |
- पानी गंदा न हो -
कभी भी भगवान की प्रतिमा का विसर्जन करते वक़्त ध्यान रखें कि जिस पानी में विसर्जन किया जा रहा है वो गन्दा ना हो | किसी गंदे नाले या गंदे पानी में विसर्जन न करें |
- विसर्जन से पहले पूजा -
ध्यान रहे विसर्जन से पहले आप पुष्प एवं चावल के कुछ दाने हथेली में लें कर संकल्प करें और प्रार्थना करें |
- प्रसाद वितरण -
इस बात का भी ध्यान रखें कि कलश स्थापना में इस्तेमाल किये गए नारियल को प्रसाद के रूप में सबको जरूर बाटें |
- बहता पानी -
हमेशा कोशिश करें की भगवान की प्रतिमा को बहते हुए पानी में ही प्रवाह करें, ना की रुके हुए पानी में |