नीलगिरी की पहाड़ियाँ, जिन्हें "नील पर्वत" भी कहा जाता है, दक्षिण भारत के तमिलनाडु, कर्नाटक, और केरल राज्यों में फैली हुई हैं। ये पहाड़ियाँ पश्चिमी घाट का एक हिस्सा हैं और इनका नामकरण इनके विशिष्ट नीले रंग के कारण हुआ है। नीलगिरी पहाड़ियों की सबसे प्रमुख और ऊँची चोटी डोड्डाबेट्टा है, जो लगभग 2,637 मीटर (8,652 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।

नीलगिरी पर्वत श्रृंखला का भौगोलिक महत्व
नीलगिरी पहाड़ियों की स्थिति पश्चिमी घाट के बीच में है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की पश्चिमी तट रेखा के समानांतर चलती है। इन पहाड़ियों का विस्तार लगभग 2,400 से 2,600 मीटर की ऊँचाई तक है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी डोड्डाबेट्टा है, जो 2,637 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसके अलावा, कुन्नूर, ऊटी, और कोटागिरी जैसे प्रमुख हिल स्टेशन भी इसी पर्वत श्रृंखला में स्थित हैं।
नीलगिरी के आकर्षण
1.ऊटी (उधगमंडलम): ऊटी, जिसे "क्वीन ऑफ हिल स्टेशन" के नाम से भी जाना जाता है, नीलगिरी का सबसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। यहाँ का मुख्य आकर्षण ऊटी झील है, जो 1823-1825 में जॉन सुलिवन द्वारा बनवाई गई थी। झील के आसपास नौकायन, घुड़सवारी, और मिनी ट्रेन जैसी सुविधाएं हैं।
2.कुन्नूर: कुन्नूर नीलगिरी की दूसरी प्रमुख हिल स्टेशन है। यह ऊटी से लगभग 19 किलोमीटर दूर स्थित है और यहाँ की प्रमुख चोटी कुन्नूर बेट्टा है, जिसकी ऊँचाई 2,101 मीटर है। कुन्नूर अपने चाय बागानों के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ का मौसम पर्यटकों के लिए बहुत आकर्षक होता है।
3.कोटागिरी: कोटागिरी नीलगिरी की सबसे पुरानी हिल स्टेशनों में से एक है। यह समुद्र तल से लगभग 1,793 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ का मौसम साल भर सुहावना रहता है। कोटागिरी में पर्यटकों के लिए कई ट्रेकिंग ट्रेल्स और वॉटरफॉल्स हैं।
नीलगिरी की जैव विविधता
नीलगिरी पहाड़ियाँ जैव विविधता से भरी हुई हैं। यहाँ के जंगलों में शाला, चंदन, और सागौन के पेड़ पाए जाते हैं। इसके अलावा, यहाँ की वनस्पतियों में कई दुर्लभ और स्थानीय प्रजातियाँ भी शामिल हैं। नीलगिरी की वाइल्डलाइफ में भारतीय हाथी, बाघ, तेंदुआ, और नीलगिरी ताहर शामिल हैं। नीलगिरी की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए यहाँ कई वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किए गए हैं, जिनमें मुदुमलाई नेशनल पार्क और साइलेंट वैली नेशनल पार्क प्रमुख हैं।

नीलगिरी की संस्कृति और इतिहास
नीलगिरी पहाड़ियों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यहाँ के स्थानीय आदिवासी जनजातियों में टोडा, कोटा, और कुरुम्बा प्रमुख हैं। इन जनजातियों की अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा, और परंपराएं हैं। टोडा जनजाति विशेष रूप से अपने हस्तशिल्प और पारंपरिक वस्त्रों के लिए जानी जाती है।
नीलगिरी का जलवायु और मौसम
नीलगिरी पहाड़ियों का मौसम साल भर सुहावना रहता है। गर्मियों में तापमान 10°C से 25°C के बीच रहता है, जबकि सर्दियों में यह 0°C से 21°C तक गिर सकता है। मॉनसून के दौरान यहाँ अच्छी वर्षा होती है, जो यहाँ के जंगलों और वनस्पतियों को हरा-भरा बनाए रखती है। नीलगिरी का मौसम पर्यटन के लिए बहुत अनुकूल है और यहाँ साल भर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
पर्यटन और आर्थिक महत्व
नीलगिरी पहाड़ियों का पर्यटन और आर्थिक महत्व भी बहुत बड़ा है। यहाँ का पर्यटन उद्योग स्थानीय अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ है। ऊटी और कुन्नूर जैसे हिल स्टेशनों में साल भर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। इसके अलावा, यहाँ के चाय और कॉफी बागान भी आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। नीलगिरी की चाय अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ के चाय बागानों में रोजगार के कई अवसर हैं।
सारांश
नीलगिरी की पहाड़ियाँ अपने प्राकृतिक सौंदर्य, जैव विविधता, और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती हैं। यह पहाड़ियाँ दक्षिण भारत के तीन राज्यों में फैली हुई हैं और यहाँ का मौसम साल भर सुहावना रहता है। ऊटी, कुन्नूर, और कोटागिरी जैसे हिल स्टेशनों में पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है और यहाँ के चाय बागान आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। नीलगिरी की जैव विविधता और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए यहाँ कई वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किए गए हैं।
नीलगिरी की पहाड़ियाँ प्रकृति प्रेमियों, इतिहास और संस्कृति के शोधकर्ताओं, और साहसिक पर्यटकों के लिए एक आदर्श स्थान हैं। इन पहाड़ियों का भ्रमण करने से न केवल प्रकृति की सुंदरता का आनंद लिया जा सकता है, बल्कि यहाँ की समृद्ध जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को भी करीब से देखा जा सकता है।