कौन हैं मां शीतला और क्या है इनकी महिमा?

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| Updated on March 18, 2020 | Astrology

कौन हैं मां शीतला और क्या है इनकी महिमा?

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@princesen5202 | Posted on March 18, 2020

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

आज यानि 16 मार्च को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। ज्योतिषी कहते हैं कि ये दिन माता शीतला को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम दिन है। यही वजह है कि प्रत्येक मनुष्य इस शुभ दिन माता की विधि विधान से पूजा करता है। कहा जाता है जो जातक इस दौरान माता को प्रसन्न कर लेता है उसे अपने पूरी ज़िन्दगी में कोई रोग परेशान नहीं करता। इतना ही नहीं कोढ़ जैसी बीमारी से भी शीतला माता छुटकारा दिला देती हैं। मगर कौन हैं शीतला माता? आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस बात से अंजान है कि शीतला माता के स्वरूप की गाथा क्या है? इनके प्राकट्य की कहानी क्या है? आज अपने इस आर्टिकल के द्वारा हम आपको इससे जुड़ी जानकारी देंगे कि शीतला माता की महिमा क्या है और इनके पूजन के दौरान क्या करना चाहिए-

हिंदू धर्म के समस्त ग्रंथों में से स्कंद पुराण के इनके महत्व का अधिक वर्णन मिलता है। इसमें किए उल्लेख के अनुसार देवी मां का ये स्वरूप सबसे शीतल माना जाता है। इनकी उपासना से हर तरह के रोग से मुक्ति मिलती है तथा सुंदर काया प्रदान होती है। मान्यता तो ये भी मानी जाती है कि जो जातक शीतला अष्टमी के दिन मां की आराधाना करता है, न केवल उसके बल्कि माता रानी की कृपा से उसके संपूर्ण कुल के रोग नष्ट हो जाते हैं। कहा जाता है चाहे कितनी भी मुश्किल मुराद क्यों न हो, अगर सच्चे मन से इनका आवाह्न किया जाए तो वो पूरी हो जाती है। बात इनके स्वरूप की हो तो इनके हाथ में झाड़ू, कलश, सूप तथा नीम के पत्ते दिखाई देते हैं, तथा ये गधा की सवारी करती हैं। इनके शीतल स्वरूप के कारण ही इन्हें शीतला माता के नाम से जाना जाता है।

चलिए अब पढ़ते हैं क्यों मनाई जाती है अष्टमी तथा क्या है इनकी महिमा-

वेदों शास्त्रों के अनुसार शीतला माता की उपासना मुख्य रूप से गर्मी के मौसम में की जाती है और मुख्य पर्व तो अब तक आप लोग समझ गए होंगे, माता की पूजा से इंसान को जहां एक तरफ़ आध्यात्मिक रूप से मज़बूती मिलती है तो वहीं दूसरी ओर मौसम के चलते शरीर में होने वाले रोग विकार भी मां को पूजा से दूर हो जाती हैं। ठंडक प्रदान करने वाली माता शीतला पर्यावरण को स्वच्छ रखने की प्ररेणा देती हैं। कहा जाता है शीतला माता का ये व्रत संक्रमण रोगों मुक्ति दिलाता है।

आमतौर पर हम मंदिर जाते हैं तो भगवान की प्रतिमा के दर्शन करते हैं मगर क्या आप जानते हैं जब हम मां शीतला के स्वरूप की तरफ़ देखने हैं तो इनके रूप से हमें सेहत से जुड़ा एक विशेष संदेश मिलता है। अब आप सोचेंगे कि कैसा संदेश तो चलिए बताते हैं। इनके हाथ में नीम के पत्ते, झाड़ू, सूप एवं कलश, जो साफ़-सफ़ाई और समृद्धि की सूचक मानी जाती हैं। तो वहीं इनको बासी और खाद्य पदार्थ चढ़ाया जाता है, जिसे बसौड़ा कहा जाता है। तो वहीं इन्हें चांदी का चौकोर का टुकड़ा अर्पित किया जाता है जिस पर इनका चित्र बना होता है। आमतौर पर इनकी उपासना गर्मी व वंसत के मौसम में की जाती है। कहा जाता है इन्हीं ऋतुओं में रोगों के संक्रमण की संभावनाएं अधिक होती हैं।


धार्मिक रूप के साथ-साथ शीतला माता के इस पर्व का अधिक वैज्ञानिक महत्व भी है। बल्कि कहा जाता वास्तव में यह एक वैज्ञानिक पर्व है। इस दिन से गर्मी की शुरुआत होती है। यह त्यौहार सांकेतिक रूप से यह बताता है कि इस दिन के बाद से बासी आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए। ठंडे खाने का सेबन करना चाहिए। कहने का अर्थ है ये पर्व आध्यात्मिक के साथ साथ वैज्ञानिक रूप से भी कई तरह के संदेश देते हैं।

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@vishalrajput8984 | Posted on April 4, 2020

गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है
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