पदबंध दो शब्दों से मिलकर बना हुआ शब्द है। पद और बंध। पद का अर्थ होता है किसी वाक्य में आया हुआ शब्द।

बंध का मतलब होता है इन शब्दों को व्याकरण के अनुसार बांधना यानी प्रयोग करना।
दोस्तों आप तो जानते हैं कि कोई भी भाषा लिखी जाती है या बोली जाती है। वह व्याकरण के कारण ही सही तरीके से लिखी और बोली जाती है।
अगर किसी भाषा से सही से (पद) शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है तो वहां भाषा पदबंध दृष्टि से सही नहीं होगा। उसमें गलतियां होंगी।
अब आप निम्नलिखित उदाहरण से समझे।
मैं आपको 3 शब्द दे रहा हूं। इससे आप को एक वाक्य बनाना है।
राजू, किताब, पढ़ता, है
यह चारों शब्द अलग अलग है। पर इनका व्याकरण वाला परिचय है- जैसे राजू पुलिंग एकवचन कर्ता कारक व्यक्तिवाचक संज्ञा है।
जब यह वाक्य में आएगा तो इस पद की तरह होगा और दूसरे शब्दों से जुड़कर पदबंध बनाएगा।
इसी तरह किताब स्त्रीलिंग एकवचन कर्म कारक और जातिवाचक संज्ञा है।
पढ़ता है वर्तमानकाल पुलिंग एकवचन।
अगर वाक्य बनाया जाए तो ये चारों शब्द जब एक वाक्य में आएंगे तो व्याकरण के नियम से यह शब्द पदबंध हो जाएगा। यानी शब्द उस वाक्य में व्याकरण के नियम के अनुसार जुड़ जायेंगे।
राजू किताब पढ़ता है।
आप कहेंगे कि यह कौन सी बड़ी बात है लेकिन जैसे ही राजू पुलिंग की जगह पर स्त्रीलिंग जातिवाचक संज्ञा रख दिया तो पूरा पदबंध वाक्य बदल जाएगा।
गीता किताब पढ़ती है।
जैसे गीता स्त्रीलिंग शब्द आया वैसे ही क्रिया स्त्रीलिंग बन गया। इसी को कहते हैं पदबंध का प्रभाव।
तो पदबंध होते हैं निम्नलिखित प्रकार के-
पदबंध के पांच भेद होते हैं
संज्ञा पदबंध-
संज्ञा पदबंध वाला होता है। जैसे राजू किताब पुस्तक इत्यादि से जुड़े शब्द।
सर्वनाम पदबंध-
सर्वनाम से जुड़े हुए शब्द तुम तुम्हारा उसका उसकी
विशेषण पदबंध
लाल पीला नीला अच्छा बुरा आदि विशेषक से जुड़े हुए शब्द।
क्रिया पदबंध
जाना, पीना, सोना, गाना, बजाना, उठना, चाहती है आती है, सोती है ...
क्रिया विशेषण पदबंध
आगे पीछे धीरे ऊपर नीचे लगातार इत्यादि क्रिया विशेषण वाले ढेरों पदबंध है।