कौन सा भारतीय प्रधानमंत्री सबसे बेहतर रहा, और कौन देश के लिये सबसे बुरा साबित हुआ इसे साफ़ तौर पर कहना बहुत कठिन है। क्योंकि सबका ही अपना एक 'विज़न' था। एक आदर्श समाज के लिये हम सबके मन में स्वाभाविक रूप से एकदूसरे से भिन्न कल्पना होती है। और हम यथासंभव उसे अपने सांचे में ही ढाल देना चाहते हैं।
हालांकि एक प्रधानमंत्री के तौर, व्यक्ति की यह व्यक्तित्वगत सोच अधिक प्रभावी हो जाती है। क्योंकि तब वह बहुत से अन्य लोगों को भी प्रभावित करने में सक्षम होती है। चुनांचे, देश का प्रधानमंत्री सभी देशवासियों का मुख्य-नियंता हो जाता है, और उनकी दशा-दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। इसलिये यह विमर्श का विषय हो जाता है, कि हमारे भारत देश में अब तक किस प्रधानमंत्री का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा; और यह भी कि इस मायने में सबसे फिसड्डी कौन साबित हुआ!
जैसा कि चर्चा की जा चुकी है कि सबका अपना ही आदर्श होता है, और काम करने का तरीका भी। पर जब हम किसी व्यक्ति का भारत के प्रधानमंत्री के रूप में मूल्यांकन करना चाहते हैं तो हमें इसे अपने किन्हीं निजी मूल्यों पर नहीं, बल्कि भारतीय संविधान व उसकी मंशाओं की कसौटी पर ही रखना होगा। क्योंकि समाज में देश-काल के अनुसार यहां-वहां चलने वाली नुक्कड़-चर्चा कभी भी किसी को 'हीरो या विलेन' साबित कर देती है। गौर करें तो ये अक्सर बेसिरपैर की और पूरी तरह सियासत से प्रेरित बातें ही होती हैं।

कोई पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी को लौह-महिला कहकर पूजता है; तो कोई गलीगलौज़ पर उतर आता है। बहुत कुछ यही स्थिति वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ भी है। वहीं, आज़ाद भारत के शुरुआती करीब दो दशकों तक भारत के प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू को लेकर भी लोगों के विचारों में जमीन-आसमान का फ़र्क देखा जा सकता है। कुछ लोगों की नज़र में वही नवभारत निर्माता हैं, तो कुछ उन्हें देश की सभी समस्याओं की जड़ मानते हैं। हालांकि उनके पश्चात्वर्ती स्व लाल बहादुर शास्त्री निर्विवाद रूप से एक उम्दा प्रधानमंत्री माने जाते रहे हैं। हालांकि शास्त्री जी भी कांग्रेस से ही थे, पर कहा जाता है कि उनकी मृत्यु विवादित होने के चलते कुछ विपक्षी भी सहानुभूति में आ गये, और इस तरह वे सर्वसम्मत बने रह सके।

लाल बहादुर शास्त्री जी के बाद 'इंदिरा युग' शुरू हुआ। जिसे स्वतंत्र-भारत के आजतक के इतिहास में सबसे विवादित काल कहना गलत न होगा। इस दौरान भारतीय राजनैतिक परिदृश्य में तमाम अप्रत्याशित परिवर्तन दर्ज़ हुये। 1975 की 'इमरजेंसी' के दंश आज तक लोगों को चुभ रहे हैं। फिर मोरार जी देसाई आये, जो जेपी आंदोलन में इंदिरा हटाओ के नारे पर चलते हुये चलते देश के प्रधानमंत्री बने। पर किसान-नेता चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने के उतावलेपन से मोरार जी को भी त्याग-पत्र देना पड़ा। हालांकि चौधरी जी प्रधानमंत्री रहते कभी संसद न जा सके। और इसके बाद इंदिरा गांधी फिर से पीएम बनीं। अंतर्राष्ट्रीय फलक पर एक मजबूत नेता बनकर उभरीं स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत के आन और मान को दुनिया भर में बढ़ाया। वे अपनी मौत तक देश की प्रधानमंत्री बनी रहीं।
इसके बाद राजीव गांधी का वक़्त आया, जो स्वतंत्र-भारत के इतिहास में आजतक सर्वाधिक वोट और सीटें पाकर प्रधानमंत्री बने। उन्हें देश में आईटी-क्रांति की नींव रखने के लिये जाना जाता है। उन पर तुष्टिकरण और कुछेक विवादित फ़ैसले लेने के आरोप भी लगे। पर वे मूल रूप से राजनैतिक व्यक्तित्व के नहीं थे। राजीव जी ने इंदौर की शाहबानो मामले में हस्तक्षेप किया, और उसके बाद असंतुष्ट हो चले हिंदू-समुदाय को तुष्ट करने के लिये अयोध्या-नगरी स्थित राम-मंदिर का ताला खुलवाया। हालांकि उससे उनकी कुछ सियासत नहीं सुधरी, बल्कि उल्टे विपक्षियों ने इसे अपनी जीत के तौर पर प्रचारित किया और इस तरह मंदिर-आंदोलन का सूत्रपात हुआ। पड़ोसी देश श्रीलंका में शांति-सेना भेजना राजीव गांधी के स्वयं के लिये अत्यंत घातक सिद्ध हुआ।
राजीव के समय में ही वीपी सिंह वित्त मंत्री थे, जिन्होंने देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। और जिन्होंने मंडल-आयोग की पुरानी रिपोर्ट को उठाकर देश की सियासत की दशा-दिशा ही बदलकर रख दी। जिससे भारत में जाति आधारित राजनीति को एक नई धार मिली। राजीव गांधी के बाद वीपी सिंह और युवा-तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर अल्पकाल के लिये पीएम बने। यह राजनैतिक अस्थिरता का शुरुआती दौर रहा। जिसके बाद पीवी नरसिंहराव ने भी एक कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेई की तेरह दिनी सरकार आई। और राजनैतिक अस्थिरता का दौर फिर लौट आया।
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फिर एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल थोड़े-थोड़े समय तक रहे। जिसके बाद अटल जी फिर से एक बार तेरह माह के लिये प्रधानमंत्री बने। लेकिन अगले आम चुनावों में वे फिर प्रधानमंत्री बने, और अपना कार्यकाल पूर्ण किया। अटल जी एक ऐसे व्यक्तित्व के मालिक थे कि उनके राजनैतिक विरोधी भी उन्हें सम्मान से देखते थे।
उनके पश्चात्वर्ती डॉ. मनमोहन एक जाने-माने अर्थशास्त्री हैं, और उन्होंने दस सालों तक प्रधानमंत्री का दो कार्यकाल पूरा किया। नरसिंहराव के समय वित्तमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने देश में आर्थिक सुधारों की नई इबारत लिख दी। उनके प्रधानमंत्री बनते ही शेयर-बाजार का उत्साह देखने लायक था। उनके बाद से आज तक 'मोदी-युग' चला आ रहा है। मनमोहन सिंह जी जहां एक अर्थशास्त्री थे, तो मोदी जी राजनीति-शास्त्री। डॉ. मनमोहन सिंह जहां बहुत कम बोलते थे, वहीं नरेंद्र मोदी एक मुखर वक्ता हैं। लोग मोदी जी की तुलना इंदिरा गांधी से भी करते हैं।

पर अब असल सवाल है कि एक निरपेक्ष नज़रिये से भारत का सबसे अच्छा या बुरा प्रधानमंत्री किसे कहा जा सकता है, और कैसे! वह कौन सी कसौटी हो, जिसके आधार पर यह तय किया जाये! सबकी अपनी-अपनी विशेषतायें रही हैं। नेहरू जी जहां एक कोमल हृदय के प्रधानमंत्री रहे, तो शास्त्री जी एक बेहद ईमानदार व्यक्तित्व के। इंदिरा गांधी को अगर लौह-महिला कहा गया, तो मोदी जी की भी तुलना उनसे जायज़ ही होती है। गलतियां और कमियों के साथ ख़ूबियां भी सबकी अपनी-अपनी ही रहीं, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोई भी नेता अथवा प्रधानमंत्री इतिहास में अपने कार्यकाल को बुरे तौर पर नहीं दर्ज़ कराना चाहता। इसलिये इस संवेदनशील विषय पर विचार करते हुये हमें एक ईमानदार और संतुलित नज़रिया अपनाना चाहिये..