मदर टेरेसा उन मोहन लोगों में से एक है जिन्होंने सच्चे मन से जरूरतमंदों की सेवा कि और शांती और साहस की परिभाषा समझायी | नोबेल पुरस्कार के लिए मदर टेरेसा के नाम की अनुशंसा करने वालों में सबसे ऊपर थे विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट मेक्नामारा लेकिन विश्व बैंक पूरी दुनिया की सरकारों को ग़रीबी उन्मूलन के लिए अरबों डॉलर ऋण दिया करता है, लेकिन उसे ये भी पता है कि अंत में दुनिया की सभी विकास योजनाओं पर मानवीय संबंध और सरोकार कहीं अधिक भारी पड़ते हैं |
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-Wikipedia
वही मेक्नामारा का कहना था, "मदर टेरेसा नोबेल शांति पुरस्कार की सबसे बड़ी हक़दार हैं, क्योंकि वो मानव मर्यादा को भंग किए बगैर शांति को बढ़ावा दिए जाने में यक़ीन करती हैं |
मदर टेरेसा ने नोबेल पुरस्कार समारोह के बाद उनके सम्मान में दिए जाने वाले भोज को रद्द करने का अनुरोध किया था, ताकि इस तरह से बचाए गए धन को कोलकाता के ग़रीबों की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जा सके, उनकी यही महानता उन्हें पूरे विश्व में एक अलग पहचान दिलाती गयी और वह शांती की दूत बन गयी |
इतना ही नहीं बल्कि उन्होनें अपने जीवन के अंतिम दिनों तक ग़रीबों के शौचालय अपने हाथों से साफ़ किए और अपनी नीली किनारे वाली साड़ी को ख़ुद अपने हाथों से धोया | भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला ने मदर टेरेसा की जीवनी लिखी है, मदर टेरेसा से उनकी पहली मुलाकात 1975 में हुई थी जब वो दिल्ली के उपराज्यपाल किशन चंद के सचिव हुआ करते थे |
ऐसा माना जाता है कि दुनिया में लगभग सारे लोग सिर्फ अपने लिए जीते हैं पर मानव इतिहास में ऐसे कई मनुष्यों के उदहारण हैं जिन्होंने अपना तमाम जीवन परोपकार और दूसरों की सेवा में अर्पित कर दिया। मदर टेरेसा भी ऐसे ही महान लोगों में एक हैं जो सिर्फ दूसरों के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा ऐसा नाम है जिसका स्मरण होते ही हमारा ह्रदय श्रध्धा से भर उठता है और चेहरे पर एक ख़ास आभा उमड़ जाती है। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिनका ह्रदय संसार के तमाम दीन-दरिद्र, बीमार, असहाय और गरीबों के लिए धड़कता था और इसी कारण उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उनके सेवा और भलाई में लगा दिया। उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ (Agnes Gonxha Bojaxhiu ) था।