सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले देश की पहली महिला शिक्षक और सामाजिक क्रांतिकारी थी | वह 19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका थी | जिन्होनें महिलाओं का मान बढ़ाया और एक महिला अकेले कितनी स्ट्रांग और महान है इस बात को बाकी महिलाओं को समझाया | उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया और उनका जीवन सबके लिए प्रेरणा लेने वाला था |
महाराष्ट्र में जन्मीं महान सावित्री बाई फुले जिन्होंने अपने पति दलित चिंतक समाज सुधारक ज्योति राव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई और आपको जान कर हैरानी होगी की
विवाह के समय सावित्री बाई फुले पूरी तरह अनपढ़ थीं, तो वहीं उनके पति तीसरी कक्षा तक पढ़े थे | जिस दौर में वो पढ़ने का सपना देख रही थीं, तब दलितों के साथ बहुत भेदभाव होता था और उस वक्त की एक घटना के अनुसार एक दिन सावित्री अंग्रेजी की किसी किताब के पन्ने पलट रही थीं, तभी उनके पिताजी ने देख लिया और तुरंत वो दौड़कर आए और किताब हाथ से छीनकर घर से बाहर फेंक दी | इसके पीछे ये वजह बताई कि शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही है, दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करना पाप था | बस उसी दिन वो किताब वापस लाकर प्रण कर बैठीं कि कुछ भी हो जाए वो एक न एक दिन पढ़ना जरूर सीखेंगी |
तबसे सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया और सावित्रीबाई ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया | दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया, और हमेशा से महिलाओं के हित में काम किया |