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दंडवत प्रणाम का मतलब है कि दंड की तरह सीधे लेटकर प्रणाम करना। इसमें व्यक्ति का हर अंग सीधा जमीन से छूता है। माना जाता है कि यह अहंकार के अहसास को पूरी तरह से त्याग देने का प्रतीक है। इस तरह आदमी ईश्वर से कहता है कि वह सारी दुनियादारी छोड़कर उसकी शरण में आ गया है।
पर शास्त्रों में स्त्रियों को दंडवत प्रणाम करने की मनाही है। ऐसा इसलिये कि शास्त्रों के मुताबिक स्त्रियों का गर्भ और उनका वक्ष सीधा जमीन से कभी नहीं छूना चाहिये। क्योंकि स्त्रियों का गर्भ किसी को जीवन देता है। और वक्ष उसे पोषण देने का काम करते हैं। इसलिये शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को दंडवत प्रणाम कभी नहीं करना चाहिये।
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शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि महिलाओं को दंडवत प्रणाम कभी भी नहीं करना चाहिए हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार कहां जाता है कि स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन में स्पर्श नहीं होना चाहिए। क्योंकि हर स्त्री का गर्भ एक जीवन को सजेहकर रखता है और उसी गर्भ से सृष्टि का चक्र चलता है इसी से मानव की उत्पत्ति होती है ठीक उसी ही प्रकार उस वक्ष से जीवन पोषण मिलता हैं इसी कारण से स्त्रियों को दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए। अर्थात स्त्रियों को सिर झुका कर, हाथ जोड़कर ही प्रणाम करना चाहिए.।
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क्या आपको पता है कि महिलाओं को दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए दरअसल शास्त्रों में बताया गया है कि प्रणाम करते वक्त व्यक्ति का पूरा शरीर धरती को स्पर्श करता है इसलिए शास्त्रों के अनुसार कहा गया है कि महिला का गर्भ और उसका वक्ष कभी भी जमीन से स्पर्श नहीं होना चाहिए इसलिए कहा जाता है क्योंकि गर्भ एक जीवन को सहेज कर रखता है और जो उसके अंदर वक्ष होता है वह बस इस जीवन का पालन पोषण करता है इसलिए गर्भवती महिलाओं को दंडवत प्रणाम ही करना चाहिए और जो भी महिलाएं करती हैं उन्हें तुरंत ही इस प्रणाम को करना बंद कर देना चाहिए।
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