वाराणसी में गुरुवार की शाम विश्वनाथ मंदिर के ज्ञानवापी द्वार पर उस वक्त नया माजरा देखने को मिला जब बाबा विश्वनाथ की सप्त ऋषि करने वाले अर्चक सड़क पर ही भगवान शिव के पार्थिव शिवलिंग की स्थापना कर उनकी सप्त ऋषि आरती विधि विधान से करने लगे. पता चला कि मंदिर प्रशासन ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया. यह विवाद कई दिनों से चल रहा था. आज जब उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया तो लोगों ने विरोधस्वरूप वहीं बैठकर बाबा विश्वनाथ की सप्त ऋषि आरती की.
सप्त ऋषि आरती करने वालों में प्रधान अर्चक गुड्डू महाराज ने बताया कि ये आरती उनके परिवार की तरफ से बीते 300 साल से की जा रही है. इस आरती में प्रशासन से कोई सहयोग नहीं लिया जाता. विशेष तरह के मंत्र उच्चारण के साथ जब आकाश में सप्त ऋषि तारा निकलता है उस समय उन ऋषियों के प्रतीक स्वरूप आरती की जाती है. उनका परिवार इस परंपरा को निभाता आ रहा है.
यह विवाद काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में गोपाल मंदिर के गुंबद के क्षतिग्रस्त होने से जुड़ा है. प्रशासन का कहना है कि उक्त मंदिर के गुंबद के टूटने की भ्रामक खबर सप्त ऋषि करने वाले अर्चक ने फैलाई. इसके कारण उनके पास निरस्त कर दिए गए और उन्हें मंदिर में प्रवेश करना वर्जित कर दिया गया. लिहाजा उन्हें आज मंदिर नहीं जाने दिया गया.
जिला प्रशासन ने सप्त ऋषि आरती अपने पुजारियों से संपन्न कराई और मीडिया में उसकी फोटो भी जारी की क्योंकि यह भी खबर चल रही थी कि आज सप्त ऋषि आरती नहीं हो पाई.
डीएम वाराणसी कौशल राज शर्मा ने स्पष्टीकरण दिया कि काशी विश्वनाथ मंदिर और अर्चकों के बीच मंदिर परिसर में चल रहे निर्माण कार्य को लेकर जो भी प्रकरण रहा उसकी मेरिट पर बिना जाते हुए यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रशासन किसी भी प्रकार की अफवाह नहीं चाहता. स्थिति सबके सामने स्पष्ट करनी चाहिए, सोशल मीडिया में कई न्यूज़ ग्रुप में यह बात चली थी कि आज मंदिर में सप्त ऋषि आरती नहीं हुई और सदियों पुरानी परंपरा टूट गई. इसी तथ्य की जानकारी प्राप्त की गई और उसे स्पष्ट किया गया.
उन्होंने कहा कि जहां तक इस इस पूरे प्रकरण का सवाल है. इसमें भी प्रशासन का नजरिया स्पष्ट है. अर्चकों को मंदिर प्रशासन से सौहार्दपूर्ण तरीके से वार्ता करनी चाहिए थी. उनके द्वारा सीधे निर्माण कार्य पर आरोप लगाकर प्रकरण को सनसनीखेज ढंग से प्रचारित किया गया. यदि निर्माण कार्य के दौरान कुछ हुआ भी था तो उसकी अच्छे तरीके से जानकारी सामने लानी चाहिए थी. और यदि कुछ हुआ ही नहीं तो किसी भी तरह अफवाह नहीं फैलानी चाहिए थी. वे स्वयं को मंदिर की परंपरा से जोड़े रखना चाहते हैं तो उन्हें समझना आवश्यक होगा कि प्रकरण का समाधान केवल सौहार्दपूर्ण तरीके से ही करना होगा. आज भी इस प्रकरण को विचार विमर्श के माध्यम से उनके द्वारा समन्वय करते हुए सुलझाने की आवश्यकता थी.
नया तथ्य जो निकलकर आया है वह यह है कि लॉकडाउन के कारण जो उल्लंघन किया गया, इस घटना की केवल उल्लंघन के परिप्रेक्ष्य में फौरी जांच की जा रही है और इसमें बिना किसी मंदिर के प्रकरण को जोड़े या बिना अर्चकों या कार्य के ठेकेदार आदि के प्रकरण को देखते हुए जांच के आधार पर मेरिट पर निर्णय लिया जाएगा. उल्लंघन मंदिर में नहीं सार्वजनिक स्थान पर हुआ है और अज्ञानता के अभाव में न होकर ज्ञानी पुरुषों द्वारा किया गया है. यह उल्लंघन करते समय इसके परिणाम का अवश्य ही उनको ज्ञान रहा होगा. किसी भी धार्मिक स्थल का नाम लेकर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के उल्लंघन का अधिकार इस देश में किसी को नहीं है.
