मीना कुमारी की शायरियों में ज़िंदादिली और गम का एहसास एक साथ क्यों होता था? - letsdiskuss
Official Letsdiskuss Logo
Official Letsdiskuss Logo

Language



Blog

Aditya Singla

Marketing Manager (Nestle) | Posted on | others


मीना कुमारी की शायरियों में ज़िंदादिली और गम का एहसास एक साथ क्यों होता था?


8
0




Content writer | Posted on


बॉलीवुड में ट्रैजिडी क्वीन के नाम से जाने जाने वाली मीना कुमारी ना केवल एक नाम था बल्कि खूबसूरती और सकारात्मक व्यक्तित्व की एक गज़ब मिसाल भी मानी जाती थी, यही वजह है कि मीना कुमारी की शायरियों में लोगों को उनकी ज़िंदादिली और गम का एहसास एक साथ होता था और वह लाखों दिलों पर राज करती थी | मीना कुमारी के शब्दों में आप ज़िंदगी जीने के एहसास से ले कर जीवन के हर रंग के पहलुओं को महसूस कर सकते हो |

 

Letsdiskuss (courtesy-NDTV Khabar)

 

आज आपको मीना कुमारी के जीवन से जुड़े कुछ तथ्य और उनकी रोचक शायरियों के बारें में बताते है -

 

(courtesy-shabd)

 

 
 
- वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में शुमार होने के साथ ही मीना उम्दा शायर और गायिका भी थी |
 
 
 
- मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1932 को बंबई में हुआ था, और मीना कुमारी का असली नाम महजबीन बेगम था |
 
 
 
- भारतीय सिनेमा की ट्रैजिडी क्वीन (Tragedy Queen) कही जाने वाली मीना कुमारी आज भी लाखों दिलों पर राज करती हैं और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में शुमार होने के साथ ही मीना उम्दा शायर भी थी |
 
 
(courtesy-amarujala)
 
 
- मीना कुमारी के फिल्मी करियर की शुरुआत साल 1939 में फिल्म "लैदरफेस" से हुई जिसके निर्देशक विजय भट्ट थे |
 
 
 
- विजय भट्ट की फिल्म बच्चों का खेल में 13 वर्ष की महजबीन का नाम मीना कुमारी दिया जिसके बाद से ही महजबीन मीना कुमारी के नाम से हिंदी सिनेमा में प्रख्यात हुई |
 
 
 
 
- मीना कुमारी एक गरीब परिवार से थी और कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद उनके परिवार के पास डॉक्टर को देने के लिए पैसे तक नहीं थे, जिसके कारण उनके पिता अली बख्‍श उनको अनाथालय की सीढ़ियों पर छोड़ कर आ गायें थे |
 
 

 

 

 
 
 
- मीना कुमारी ने कई गीतों को अपनी आवाज़ दी और उन्होनें गायिकी की साड़ी तालीम अपनी माँ से ली |
 
 
 
 
- मीना कुमारी ने 'बहन' फिल्म में अपना पहला गीत "ले चल मुझे अपनी नगरिया गोकुल वाले सांवरिया" गाया था जिसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में गीत गाए. साथ ही उन्होंने उन्होंने "ईद का चांद" फिल्म में संगीतकार का भी काम किया था जो उनके जीवन में एक बड़ी पदवी रही |
 
 
 
- अपने 30 साल के पूरे फिल्मी सफर में मीना कुमारी ने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और साल 1954 में फिल्म ‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी को बेस्‍ट एक्‍ट्रेस का फ़िल्मफेयर अवॉर्ड भी दिलवाया |
 
 
 
मीना कुमारी की बेहतरीन शायरियां -
 
 
(courtesy-Pinterest)
 
 
1 - चांद तन्हा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां कहां तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी
दोनों चलते रहें कहां तन्हा
जलती बुझती सी रौशनी के पर,
सिमटा सिमटा सा एक मकां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा
 
 
 
2 - आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
हंस हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे़
हर शख़्स की क़िस्मत में ईनाम नहीं होता
बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
 
 
 
3 - यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे
 
 

 

 

 


4
0